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________________ नन्दिसूत्रम् । ॥२६॥ Jain Education Inte मनःपर्यवज्ञाननुं स्वरूप प्रथम मनः पर्यवज्ञान मनुष्यगतिमांज उत्पन्न थाय छे. तेमां पण केटली केटली योग्यतावाळाओने उत्पन्न थाय छे, ते योग्यताओनुं वर्णन करेल छे. तेना वे भेद छे. ऋजुमति अने विपुलमति चिन्तनमां रहेला द्रव्यना पर्यायोमाथी केटला पर्यायने जाणनार ऋजुमतिज्ञान छे, चिन्तनमां रहेला द्रव्यना घणा पर्यायाने जाणनार विपुलमति ज्ञान छे. तेनो द्रव्य क्षेत्र, काळ अने भावनी अपेक्षाए चार प्रकारे विषय बतावे छे. ऋजुमतिनो विषय द्रव्यथी:- अनंता अनंतप्रदेशी स्कन्धो क्षेत्रथी:- जघन्यथी - अंगुलनो असंख्यातमो भाग उत्कृष्टथीः- अधोदिशामां - रत्नप्रभाना क्षुल्लक प्रतर सुधी ऊर्ध्व दिशामां :- ज्योतिषीना उपरना तळीआ सुधी तिर्यग्दिशामां :- मनुष्य क्षेत्र सुधी कालथी :- जघन्यथी पल्योपमनो असंख्यातमो भाग For Private & Personal Use Only विपुलमतिनो विषय ते ज स्कन्धो वधारे प्रमाणमां अने विशुद्ध रीते दरेक दिशामां अढी अंगुल अधिक अने निर्मळपणे ऋजुमति करता वधारे अने निर्मळ प्रस्तावना | ॥२६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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