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नन्दिसूत्रम् ।।
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प्रस्तावना।
[१०] परोक्ष ज्ञानना बीजा भेदतुं विस्तारथी वर्णन करीने श्रुतज्ञान, परोक्षज्ञान अने ज्ञानसामान्यनु वर्णन पूर्ण करे
छ. हवे प्रत्येक विभागनी विशेषता तपासी लइए. [१] अहीं प्रथम इलोकनुं अवतरण करतां चूर्णिकार जणावे छे के 'सव्वसुत्तत्था य जतो तित्थगरप्पभवा अतो वत्तीण पन्नवगसावगे पढगचिंतगा य पढमत्ताए नमोक्कार करेत्ता भणंति' अर्थात् श्रुतना सर्व अर्थों तीर्थ करथी नीकळेला (कहेवायेला) होय छे. तेथी प्ररूपक श्रोता जाणनार अने चिंतन करनारने प्रथम नमस्कार करीने शरूआत करे छे. आ हेतुथी श्रमणसंघमां व्याख्याननी शरूआत करतां पहेलां 'जयइ जगजीवजोणी' आदि श्लोक द्वारा अद्यापि पर्यंत मंगला चरण करवानी पद्धति चालती आवी होय तेम लागे छे. जेना द्वारा वीर प्रभुने नमस्कार थाय छे. वळी सर्व प्रथम गाथा जाणे ग्रंथना ज्ञान द्वारा कर्मशत्रुनो जय करवान ज सूचन करती होय तेम लागे छे-'जयई' एवा शब्दथी शरू थाय छे तेमज गाथाना प्रथम शब्दथी लइने छेल्लेथी पहेला शब्द सुधी दरेक शब्दनी आदिमा 'ज' आवतो होवाथी वर्णानुप्रास नामना अलंकारथी शोभी रहेल छे अने आ कवित्वशक्तिनो संघने आपेलां रूपकोमा तेमज स्थविरावलीना वर्णनमा सारो परिचय मळी रहे छे.
[२] अहीं संघने स्थ, चक्र, नगर, पद्म, चन्द्र, सूर्य, समुद्र अने मेरुपर्वतर्नु रूपक आपवामां आव्युं छे. पण [पू. || हरिभद्र सू. म. कृत टीकामां तेनो क्रम जुदो जोवामां आवे छे. ते आ प्रमाणे-[१] नगर [२] चक्र [३] स्थ [४] पद्म [६] सूर्य [७] समुद्र [८] मेरुपर्वत. तफावत मात्र एटलो ज छे के चूर्णिमां स्थना रूपकनो प्रथम अने नगस्ना
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