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संग्रह.
धर्म- 18 करेइ विहिणा, उस्सग्गं चिंतए अ उज्जोअं । बीअंदसणसुद्धीऍ, चिंतए तत्थ इममेव ॥ २० ॥ तइए नि
साइआरं, जहम चिंतिऊण पारेइ । सिद्धत्थयं पढित्ता, पमज संडासमुवविसइ ॥ २१ ॥ पुव्वं व पुत्ति॥२१९॥
पेहणवंदणमालोअ सुत्तपढणं च । वंदणखामणवंदणगाहातिगपढणमुस्सग्गो ॥ २२ ॥ ग्रं (८०००) तत्थ य चिंतह संजमजोगाण न होइ जेण मे हाणी । तं पडिवजामि तवं, छम्मासं ता न काउमलं ॥ २३ ॥ एगाइ इगुणतीसूणयंपि न सहो न पंचमासमवि । एवं चउतिदुमासं, न समत्थो एगमासंपि ॥ २४ ॥ जा तंपि तेरमूणं, चउतीसइमाइअं दुहाणीए। जा चउथं तो आयंबिलाइ जा पोरुसि नमो वा ॥ २५ ॥ ज सकतं हिअए, धरेत्तु पारेइ पेहए पुतिं । दाउ वंदणमसढो, तं चिअ पञ्चक्खए विहिणा ॥ २६ ॥ इच्छामो अणुसद्विन्ति भणिअ उवविसिअ पढइ तिणि थुई । मिउसद्देणं सकत्थयाइ तो चेइए वंदे ॥ २७ ॥ अह पक्खिअं चउद्दसिदिणंमि पुव्वं व तत्थ देवसि। सुत्तंतं पडिकमिउं, तो सम्ममिमं कम कुणइ ॥ २८॥ मुहपत्ती वंदणयं, संबुद्धाखामणं तहाऽऽलोए । वंदणपत्तेअखामणं च वंदणयमह सुत्तं ॥ २९ ॥ सुत्तं अब्भुट्ठाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तहय । पजंतिअखामणयं, तह चउरो छोभवंदणया ॥ ३०॥ पुवविहिणेव सव्वं, देवसिअं वंदणाह तो कुणइ । सेजसुरीउस्सग्गो, भेओ संतिथयपढणे अ॥ ३१ ॥ एवं चिअ चउमासे, वरिसे अ जहकर्म विही णेओ । पक्खचउमासवरिसेसुं, नवरि नामंमि णाणतं ॥ ३२॥ तह उस्सरगुज्जोआ, बारस वीसा समंगलगचत्ता । संबुद्धखामणं तिपणसत्तसाहूण जहसंखं ॥ ३३ ॥” प्रतिक्रमणसूत्रवि
MACHCECE
॥२१९॥
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