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________________ सुमतिसाधु INI दशवै. ॥१७॥ लघुवृत्तिमा व्याख्या करी नथी. पृ. ५. पर चोथा अध्ययनमा एक प्रक्षिप्त गाथा छे. आ सूत्रना आठमा अध्ययननी १९ मी गाथानी वृत्तिमा 'उपाश्रय 'नो उल्लेख छे. तथा अ० ५ उ.१ गा. १८, २१ अने आठमा अध्ययननी २३ मी गाथानी वृत्तिमा 'धर्मलाभ ' शब्दनो उल्लेख छे.' आ वृत्तिकारे पोतार्नु नाम पृ. २२० मा जणावतां सुबोधकना शिष्य सुमतिसूरि एबुं कर्तुं छे, पण कोई कारणसर सुमतिसाधु एवं तेमना माटे रूढ थयुं होय एम देखाय छे.. प्रन्थकार महाराज आ लघुटीका करता पोतार्नु डहापण नथी करता पण पूर्वपुरुषोना फरमावेलानु अनुकरण करे छे, एम पृ. २२०-२२१मा जणावे छे. कर्त्तानो संवत् मळतो होय तेम लागतुं नथी, परंतु बे पुष्पिकाओ पृ. २२१मां आपेली छे. तेमां एक सं. १५१६ नी अने एक सं. १६६२ नी छे. तेथी एम तो कहेवाय ज के १५१६ पहेलां आ संकलना करी छे. १५१६नी प्रत ' श्रीजैन आनंद पुस्तकालय' सुरतमा अत्यारे विद्यमान छे. ते प्रत एकली ज वृत्तिवाळी छे. तेमा मूळ नथी. अमाकं आ संपादन कार्य प. पू. तारक देवसूरतपागच्छसमाचारीसंरक्षक आगमोद्धारक आचार्यदेव श्रीआनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराजना अनन्यपट्टधर, विद्याव्यासंगी, श्रुतस्थविर, शान्तमूर्ति आचार्य माहाराज श्रीमाणिक्यसागरसूरीश्वरजीनी अमीदृष्टिना आधारे थयुं छे. अने एक वखत प्रूफ जोइ आपवानी पण उदारता करी छे. अमे अमोने मळेली साधन-सामग्री अने अमारी बुद्धि प्रमाणे आ ग्रन्थ- संपादन कयुं छे, छतां कोई जग्याए तेवी क्षति 1. कहारयणकोसमा देवरव्यना अधिकारमा ये माईनी कथामां पृ. १०५ना पांचमी पंक्तिमा पण 'धम्मलाम' शब्द छे. Jain Education Inter For Private & Personel Use Only 'www.jainelibrary.org
SR No.600093
Book TitleDashvaikalikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchanvijay, Kshemankarsagar
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1954
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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