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________________ सुमतिसाधु श्रीदशवै० ॥१६॥ आ 'श्रीदशवैकालिक 'मां वश अध्ययनो छे. पांचमा अध्ययनमां बे उद्देशा अने नवमा अध्ययनमा चार उद्देशा छे. दश अध्ययनो पछी वे चूला छे. आ 'दशकालिक 'मां सूत्रो २२, गाथाओ ५१५ अने प्रक्षिप्त १ गाथा छे. प. पू. तारक गुरुदेवश्रीनी ए इच्छा हती के-विद्वजनोने माटे तो पांडित्यभया ग्रन्थो घणा छपाया छे, तेथी मंदमतिवाळाना बोध माटे अवचूरि जेवा अन्थो छपाय तो सारं. ए हेतुए अनेक अवचूरिओनी कोपी पोते शोधीने तैयार करी हती अने बीजाओने पण सलाह आपी हती. ए भावना अनुसार दे. ला. जै. पु. फंडे ते कार्य पण शरू कयुं छे अने पू. गुणसागरजी महाराज पासे थी ते प्रेसकोपीओ मेळवी, अने एनुं संपादन करवा माटे ते संस्थाए अमोने विनंति करी ते मुजब आ ग्रन्थ अमोए संपादित कयों छे. आ लघुपत्तिमा मूळ अने तेनी वृत्ति एम अपायुं छे. प्रस्तुत ग्रन्थमा अ. १नी त्रीजी गाथानी वृत्तिनो केटलोक भाग प्रेसकोपीमा लेखकदोषथी रही जवा पामेल जे बहुश्रुत गीतार्थपुरंदर आगमोद्धारकश्रीजीना मूळ हस्ताक्षरोमां (ब्लोक बनावीने) आपवामां आवेल छे. जे सुज्ञ पाठकजनोने आल्हाददायी निवडशे. शरूआतमा अध्ययनोनो अनुक्रम, अने विषयानुक्रम पण आपवामां आव्या छे. तेमज शुद्धिपत्रक पण अपायुं छे. वृत्ति संपूर्ण थया पछी परिशिष्टो आपवामां आवेलां छे. ते आ प्रमाणे-(१) सूत्र अने गायानो अकारादि, (२) अन्य वगेरे, (३) साक्षिग्रन्थोनां नामो, (४) साक्षिपाठोनां प्रतीको, (५) विशिष्ट नामो, (६) देखाडेलां अने भलामण करेलां उदाहरणोनां नामो, (७) व्याकरणना निर्देशो अने (८) न्यायो. एम आठ परिशिष्टो आपी ग्रन्थ पूर्ण कर्यों छे. गोल काउसमा मूकेलं अमारुं छे. चोखंडा काउंसमा मूकेलुं प्रतमा छे तेवु ने तेवु छे. ३६९ मी गाथानी बृहत् अने Jain Education Inter! For Private & Personel Use Only J oilinww.jainelibrary.org
SR No.600093
Book TitleDashvaikalikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchanvijay, Kshemankarsagar
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1954
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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