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श्रीजीवाजीवाभि० मलयगि
यावृत्तिः
॥ २४१ ॥
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अप्पेगतिया देवा उच्छोलेति अप्पेगतिया देवा पच्छोलेति [अप्पेगतिया देवा उक्विट्ठि करेंति ] अप्पेगनिया देवाकडीओ करेंति अप्पेगतिया देवा उच्छोलेति पच्छोलिंति उक्किडिओ करेंति अप्पेगतिया देवासीहणादं करेति अप्पेगतिया देवा पाददद्दरयं करेंति अप्पेगतिया देवा भूमिचवेडं दलयंति अप्पेगतिया देवा सीहनादं पाददद्दरयं भूमिचवेडं दलयंति अप्पेगतिया देवा हकारेति अप्पेगतिया देवा बुकारंति अप्पेगतिया देवा धक्कारेति अप्पे० पुकारेति अप्पेगतिया देवानामा सात अप्पेगतिया देवा हक्कारेति बुक्कारेति थक्कारेति पुकारेति णामाई सार्वति अप्पेगनिया देवा उपपतंति अप्पेगतिया देवा णिवयंति अप्पेगतिया देवा परिवर्यति अप्पेगतिया देवा उपयंति णिवयंति परिवयंति अप्पेगतिया देवा जलेति अप्पेगतिया देवा तवंति अप्पेगतिया देवा पतति अप्पेगतिया देवा जलंति तवंति पतवंति अप्पेगइया देवा गजेंति अप्पेगझ्या देवा विजुयायंति अप्पेगइया देवा वासंति अध्येगइया देवा गजंति विजुयायंति वासंति अप्पेगतिया देवा देव सन्निवार्य करेंति अप्पेगतिया देवा देवकलियं करेंति अप्पेगइया देवा देवकहकहं करेंतिअगतिया देवा करेंति अप्पेगतिया देवा देवसन्निवार्य देवकलियं देवकहकहं देवदुदुह करेंति अप्पेगलिया देवा देवज्जोय करेंति अप्पेगतिया देवा विजयारं करेति अप्पेगनिया देवा चेgarai करेंति अप्पेगतिया देवा देवुजोयं विजुनारं चेलुक्वेवं करेति अप्पेगतिया देवा उपप
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प्रतिपत्तौ बिजयदे
वाभिषेक
उद्देशः २
तु० १४१
★ ॥ ॥ २४१ ।।
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