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________________ श्रीजीवाजीवाभि० मलयगिरीयावृत्तिः ३ प्रतिपत्तौ | तियंगधिकारे विज| यदेवाभि षेक ॥२४॥ उद्देशः२ सू०१४१ वासंति, अप्पेगतिया देवा णिहतरयं णहरयं भट्टरयं पसंतरयं उवसंतरयं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणिं सम्भितरबाहिरियं आसितसम्मजितोवलितं सित्तसुइसम्मट्ठरत्यंतरावणवीहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचकलितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणिं णाणाविहरागरंजियऊसियजयविजयवेजयन्तीपडागातिपडागमंडितं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं रायहाणिं लाउल्लोइयमहियं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेंति, अप्पेगतिया देवा विजयं आसत्तोसत्तविपुलववग्धारितमल्लदामकलावं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलितं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवडज्झंतमघमघेतगंधुद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवधिभूयं करंति, अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं वहरवासं पुप्फवासं मल्लवासं गंधवासं चुण्णवासं वत्थवासं आहरणवासं, अप्पेगइया देवा हिरण्णविधि भाइंति, एवं सुवण्णविधि रयणविधिं वतिरविधिं पुष्फविधि मल्लविधि चुण्णविधि गंधविधि वत्थविधि भाइंति आभरणविधिं ॥ अप्पेगतिया देवा दुयं णविधिं उवदंसेंति अप्पेगतिया ॥२४०॥ Jain Education in For Private & Personal Use Only Drainelibrary.org
SR No.600089
Book TitleJivajivabhigamopanga Sutra
Original Sutra AuthorChaturdash Purvadhar
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages938
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_jivajivabhigam
File Size20 MB
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