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________________ श्रीजीवाजीवाभि० मलयगि-1 रीयावृत्तिः ३ प्रतिपत्ती तिर्यगधिः ४/ उद्देशः१ दसू०९६ ॥१३॥ से किं तं बादरपुढविकाइय०१, २ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तबादरपु० अपजत्तवादरपु०, से तं बायरपुढविकाइयएगिदियः । से तं पुढवीकाइयएगिदिया । से किं तं आउकाइयएगिदिय?, २ दुविहा पण्णत्ता, एवं जहेव पुढविकाइयाणं तहेव, वाउकायभेदो एवं जाव वणस्सतिकाइया से तं वणस्सइकाएगिदियतिरिक्खासे किं तं वेइंदियतिरिक्व०?, २ दुविधा पण्णत्ता, तंजहा-पजत्तकवेइंदियति अपजतबेइंदियति०, से तं बेइंदियतिरि० एवं जाव चउरिंदिया। से किं तं पंचंदियतिरिक्खजोणिया?, २ तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया थलयरपंचेंदियतिरिक्खजो खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया।से किं तं जलयरपंचंदियतिरिक्खजोणिया?, २ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-समुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य गउभवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य । से किं तं समुच्छिमजलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिता?, २ दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगसमुच्छिम० अपजत्तगसंमुच्छिम. जलयरा, से नं समुच्छिम पंचिंदियतिरिक्ख० । से किं तं गम्भवतियजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया?, २ दुविधा पण्णत्ता, तंजहा-पज्जत्तगगम्भवतिय० अपज्जत्तगभ० से तं गन्भवतियजलयर०, से तं जलयरपंचेंदियतिरि० । से किं तं थलयरपंचेंदियतिरिक्वजोणिता?,२ दुविधा पपणत्ता, तंजहा-चउपयथलयरपंचेंदिय० परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्वजोणिता। SOCCAKACACACK4 ॥१३१॥ Jain Education For Private & Personal Use Only jainelibrary.org
SR No.600089
Book TitleJivajivabhigamopanga Sutra
Original Sutra AuthorChaturdash Purvadhar
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1919
Total Pages938
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_jivajivabhigam
File Size20 MB
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