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________________ सिरिदेव सिरिसंति- नाहचरिए चंदसूरीण पत्थणा तेणं न वण्णणिज्जो सुयणो इह होइ कव्वयाराण । पेच्छंतो वि हु दोस गूहइ कव्वम्मि जो अहियं ॥१४॥ वण्णामि दुजणं चिय एवं इह जीवलोगमज्झम्मि । जो लेइ पयत्तेणं दोस कव्याओ उचिणि ॥१५॥ उच्चियदोस कव्वं निहोस होइ तेण सो चेव । वण्णणजोगो जायइ कवीण उवयारिभावेण ॥१६॥ अहवा वि हु किमणेणं ? सव्वाण वि पत्थणं करेमि अहं । अवणित्तु सव्वदोसे एयं सोहेह मह कव्वं ॥१७॥ एवं एयं समत्तं सुहयरचरिय संतिणाहस्स रम्म, जुत्तं चक्काउहस्सावरगणवइणो सक्कहाए सुहाए । जीवाणं संतिहेउं दलियकलिमलं देवचंदिदवंदं सुव्वंतं णिचकालं सिवसुहजणय होउ जीवाण सम्मं ॥१८॥ सम्म सम्मत्तमूलं दुदसभवकयं सव्वकल्लाणाणं, भव्वाणं सुव्यमाणं ललियपयजुयं सिद्धिसोक्खेक्कहेउं । संत संतिप्पउत्तं तिहुयणतिलयं वण्णणिजं बुहाणं, देवचंदोहवंदं कुणउ इह सया सव्वजीवाण संतिं ॥१९॥ परहरियसुदारो बज्जियासेसखारो धरयवयसुभारो दुक्खलक्खोहदारो। तवसिरिवरहारो दोसचोरिक्कचारो चरणधणअपारो अंतरंगारिमारो ॥२०॥ कयपवरविहारो चत्तसव्वाणयारो पणमिरसुरवारो मोहवल्लीकुठारो । दुहदवजलधारो केवलण्णाणफारो कयबहुअणगारो भव्वलोओवयारो ॥२१॥ सिवमयसुवियारो पावपंकावहारो पयडियसिवपारो दिन्नसग्गप्पयारो । भवजलणिहितारो संति-सोक्खेक्कक्कारो जयउ तिजगसारो संतिणाहो सुतारो ॥२२॥
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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