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सिरिसंतिनाहचरिए
सिरिदेवचंदसूरीण
पत्थणा
[ सिरिदेवचंदसूरीण पत्थणा ] * “कह वण्णिउं समत्थो सिरिसंतिजिणेसरस्स भवगहणे । जेण अहं छउमत्थो, मंदमई तह य अच्चत्थं ॥१॥तहा य
बहुजोयणगंतव्ये मग्गे कह जाउ पंगुलो पुरिसो ? । कह वा वि हु दुम्मेहो पढउ असे पि सुयनाणं? ॥२॥ भूमिट्ठिओ वामणओ कह या गेण्हउ फलाणि तालस्स ? । कह वा वि मंदचक्खू पेच्छेउ वरऽक्खरे सुहमे ? ॥३॥ कह वा वि उच्चकन्नो सुणेउ अइगुत्तमंतमंतणय ? । कह वा वि बाहुतरओ जाउ महाजलहिपारम्मि? ॥४॥ कह वा वि वायभग्गो देउ जणाणंदगाणि करणाणि ? । कह वा वि अप्पविजो वियरउ आयासमग्गेण ? ॥५॥ एयसमो अहयं पि हु वण्णेमि कहं नु संतिजिणचरियं ? । अहवा वि 'भत्तिवसगा मुणंति नो अत्तणो सत्तिं' ॥६॥ जह जलहिमज्झपडिओ वि इंघओ लेइ अत्तणो पूरं । बहुभोजे वि हु पत्ते लेइ नरो उदरभरमेव ॥७॥ जह बहुतारे वि नहे गणइ सुगणओ वि तारए कइवि । जह बहुदव्वे वि जए नियइ नरो थोवरूवाई ॥८॥ जह वरवक्खाणे वि हु मंदमई सुणइ कइवि हु पयत्थे । जह सामन्ननरिंदो किंची भुंजेइ भरहस्स ॥९॥ तह संतिणाहचरिए अपमाणगुणे अणेगवुत्तंते । अचंतमंदमइणा मए वि किंचि समक्खायं ॥१०॥ जो निययसत्तिवियलो उप्पाडइ गरुयभारपत्भारं । हासटाणं जायइ नियमा सो सत्तिजुत्ताणं ॥११॥ तह अहमवि मंदमई पयट्टमाणो इमम्मि कव्वम्मि । जाओ विउसजणाणं हासटाणं महमईणं ॥१२॥ अहवा नहि नहि एयं हसई कइया वि सज्जणो अन्नं । जो हिययमज्झकलुसो सो' जइ पर दुजणो हसइ ॥१३॥ १. सो पर जइ टु पा० विना ।।
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