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सिरिसंतिनाहचरिए
सिरिसंतिजिणिंदस्स णिव्वाणं
हार-हिमसरिसवण्णेण पविराइया, सिद्धिनामेण लोयम्मि विक्खाइया । पंचचत्तालजोयणहिं लक्खप्पमा, जीए तिजगे वि नो विजए उप्पमा ॥७२॥७३८२॥ सेयउत्ताणवरछत्तसमसंज्यिा, अटुजोयणई बाहल्लि जा दिट्ठिया । मज्झ देसम्मि परिहाइ पुण जतिया, मच्छियापत्ततणुयं पि बच्चंतिया ॥७३॥७३८३॥ जम्म-जर मरण-रोगेहिं परिवज्जिया, दुक्ख-दोगच्चसंगेण नो सज्जिया। जत्थ न वि कोहु, न वि माणु माया भयं, जत्थ न वि लोहसत्तुस्स परिसंगयं ॥७४॥७३८४॥ जत्थ न वि रागु, न वि दोसु संबज्झए, जत्थ न वि मोहराओ वि सन्नज्झए। जत्थ न वि ईस न विसाउ संविज्जए, जत्थ कंदप्पवरदप्पु भंजिज्जए॥७५॥७३८५॥ जत्थ न वि नारि, न वि पुरिसु, न नपुंसओ, जत्थ उप्पजए कोवि न वि संसओ । जत्थ न वि भुक्ख, न वि तिण्ह उप्पज्जए, जत्थ न विरोउ, न वि सोउ मन्निजए ॥७६॥७३८६॥ जत्थ न वि खेउ, न वि चिंत चिंतिज्जए, जत्थ न पमाउ, न वि निद्द सो विजए । जत्थ न वि विम्हओ, नो रई विजए, जत्थ सव्वो वि दुक्खोहु परिखिज्जए ॥७७॥७३८७।। अक्खयं अव्वयं जत्थ सोक्खं वर, जीए पासाउ न वि अन्नु किंपी पर । तीए न चएइ रूवं नरो भाणिउं, तित्थनाहो परं चयइ बक्खाणिउं ॥७८॥७३८८॥