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________________ सिरिसंतिनाहचरिए ती सिद्धीए जं अंतिमं जोयणं, तीए वी यतिमं कोससंकोयणं । तस्स को सस्स जो छटुओ भायओ, तत्थ नीसेससिद्धाण किर डायओ ||७०||७३८९ ॥ जाण नो सवणु नो चक्खु, नो घाणयं, जाण नो विजए देहसंताणयं । विफा, न विरूवु, न वि गंधयं, जाण नो सहु, न वि कम्मसंबधयं ॥ ८० ॥ ७३९० ॥ एवमाई उ अन्नं पि दुहकारणं, मोत्तु एक्कं परं सोक्खसंधारणं । ताण मज्झम्मि सिरिसंतिपरमेसरो, मोत्तु देहं परिट्ठाइ तिजगीसरो ॥८१॥७३९१॥ नवहिं साहू एहिं परीवारिओ, होहिही पुण वि न कया वि संसारिओ । जत्थ अप्पं पिनो अत्थि किंची दुहं, तत्थ भुंजिस्सए सव्वकालं सुहं ॥८२॥७३९२ ॥ इय संतिजिणेसरु दुहतमणेसरु सिद्धिहिं परमेसरु गयउ । तहिं सोक्खमहरु सासउ निन्भरु भुंजेसी सो जिणु जयउ ॥ ८३ ॥ ७३९३॥ एवं च जाणिऊणं सिद्धीए गये जिणेसर संतिं । बत्तीसं पि हु इंदा समन्निया देव - देवीहिं ॥ ८४॥ ७३९४ ॥ हिययब्भंतरपसरतसोयपब्भारपूरियसरीरा । मुंचति लोयणेहिं असंभवे असुपरभारे ॥। ८५ ।।७३९५।। १. किरि जे० ॥ २. सहु नो कम्म जे० का० ॥। ३. भुंजीसी जे० ॥ ४. मुघंति जे० ॥ 5+5+50+5+5+50 सिरिसंतिजिणिंदस्स णिव्वाणं ८८९
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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