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________________ सिरिसंतिनाहचरिए आइय दिसंह पाल नीसेस वि, जिणवरनाहह भत्तिविसेस वि । आइय तूरिय तूरई लेविणु, जिणह पासि एगत्थ मिलेविणु ॥ ५९॥७३६६॥ आइय जे किब्बिसिय समग्ग वि, जिणवरधम्मतरंडइ लग्गवि । आइय सव्व वि जा इंदाणिय, जिणवरंभत्तिए निरु संदाणिय ||६०||७३६७॥ आइ अन्नविकावि ज देविहु, धम्मकज्जु नियचित्ति धरेविहु । आइय असुर स देविसमन्निय, आइय वंतर अण-पणपन्निय ॥ ६१ ॥७३६८ ।। आइय जोइसिय वि जिणभत्तीए, नियपरियरसंजुत्त ससत्तिए । आइय विजाहर विहसेविणु, जिणवरअणसणवत्त सुणेविणु ॥६२॥७३६९॥ आइय नरवर गिरिपासत्थय, आइय माणुसियहं बहु सत्य । आइय अन्नन्नह विविणु, संतिजिणह अणसणु निसुणेविणु ॥ ६३ ॥ ७३७०॥ इय संतिजिणिदह दुहदव कंदह अणसणविहि निसुणवि सयल । सुर-असुर-नराहिव - अनुविज्जाहिव सव्वे वि हु आइय पबल || ६४||७३७१ || १. रभत्तिं निरु पा० ॥ *********** सिरिसंतिजिणंदस्स णिव्वाणं ८८६
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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