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________________ सिरिसंति जिणिदस्स weNNOISNENEWS णिव्वाण सिरिसंति समवसरणं सुरेदेहिं तहिं किज्जए, ज न कइया वि केणावि उवमिज्जए। नाहचरिए तत्थ उवविसिय आइसइ परमेसरो, सव्वभावाणऽणिच्चत्तणं दुहहरो ॥५१॥७३५८॥ इय देसिऊण एवं खणभंगुरयं असेसभावाणं । सम्मेयगिरिवरस्स उ आरुहइ पहाणसिहरम्मि ॥५२॥७३५९॥ * नवहिं सएहिं समाणं केवलनाणीण चारुसाहूणं । सिद्धिगमणुज्जयाणं निहावियसयलकम्माणं ॥५३॥७३६०॥ ॐ तो तदुवरि महप्पा मासुववास पंगेहए संती । सिद्धिगमणेक्कचित्तो सह तेहिं मुणीहिं पवरेहिं ॥५४॥७३६१॥ एत्थंतरम्मि इंदा सव्वे वि हु पञ्जुवासणनिमित्तं । चउविहदेवनिकाएहिं परिवुडा तत्थ संपत्ता ॥५५॥७३६२॥ अवि य आइय इंद विमाणारूढा, नियनियरिद्धीए निरु संवुढा । आइय तियस जि इंदसमाणा, सिरिजिणइंदह कयसम्माणा ॥५६॥७३६३॥ आइय सुरनाहह जे रक्खय, आउहनिवहि धरेवइ दक्खय । आइय तायतिस जे भव्वय, सुरनाहस्स वि अइगोरब्बय ॥५७॥७३६४॥ आइय तिहिं परिसहिं जे संज्यि, जिणवरवंदणि निरु उक्कंडिय । आइय कडयह सत्तह नायग, कडयसुरहं आएसह दायग ॥५८॥७३६५॥ १. पगेण्हई पा० विना ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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