________________
सिरिसंतिनाहचरिए
पढमम्मि समोसरणे उप्पन्ने चउविहम्मि संघम्मि । तत्तो जिणपयवीढे बइसइ चक्काउहगणिंदो ॥ ३२ ॥७२७३॥ भयवं वि बीयपायार अंतरत्थम्मि देवछंदम्मि । ईसाणकोणपरिसंप्रियम्मि वीसमइ गंतूण ॥ ३३ ॥ ७२७४ ॥ चक्काउहो वि भयवं तहट्टियाए जिणिदपरिसाए । बीयाए पोरुसीए चउव्विहं धम्ममुबइसइ ॥ ३४ ॥ ७२७५॥ " दाणाईओ धम्मो चउव्विहो होइ एत्थ नायव्वो । तत्थ सया बट्टंता होंति सुही पाणिणो भव्वा || १ || ७२७६ ॥ कुणह सया वि पयत्तं जइधम्मे सुटु सुंदरसरूवे । घेत्तुं च तयं सम्मं कायव्वं होइ एयं तु ॥ २ ॥७२७७ ॥ परिहरह एगभेयं असंजमं, दोन्नि राग-दोसे उ । बंधणरूवे वज्रह सपत्थदोसायरे पावे ||३||७१७८ ॥ परिहरह तिन्नि दंडे मण- वइ-काएहिं जे सया पयडा । सेवह गुत्तितियं चिय मण - वइ - कायाण गुत्तत्तं ॥४॥७२७९ ॥ वज्रेह तिन्नि सल्ले माया मिच्छं नियाणसल्लं च । गारवतियं च बजह इड्ढी - रस - सायरूवं तु ॥ ५ ॥७२८० ॥ तह य विराहणतियगं वजह नाणे य दंसणे चरणे । चयह कसायचउक्कं कोहाईयं विसेसेण ||६|| ७२८१॥ सन्नाओ चत्तारि विनिचं परिहरह ताओ एयाओ । आहारम्मि भयम्मि य परिग्गहे मेहुणे चेव ॥७॥ ७२८२ ॥ थी भत्त-देस-नरवइकहाओ विकहाओ चयह चत्तारि । झाणचउक्कम्मि पुणो वज्रह दो, दोन्नि झाएह ॥ ८॥७२८३ ॥ अहं रोद्दं वजह, धम्मं सुक्कं च झायह सुझाणं । किरियाण पंचगं पुण बज्रेयव्यं इमं तं च ॥ ९ ॥ ७२८४ ॥ १. पोरिसीए पा० विना ||
343034545454343436
पढमगणहरस्स
चक्काउहमुणिदस्स देसणा
८७८