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________________ सिरिसंतिनाहचरिए जो परापत्थविस विविहाहिं भणिइभंगीहिं । वकत्तमेव पयडइ सो कह वणिजए सरलो ? ॥ १२६ ॥ ७१४९ ॥ परदारमणिच्छंतं जंपइ रुट्ठो अणिटुबयणेहिं । खर- कक्कस - फरुसेहिं, सो होउ पियवओ कह णु ? || १२७ ||६१५० ॥ जो नरयगमणमूलं परनारीसंगमं समंहिलसइ । परिमुक्कसव्वधम्मो, सो भन्नइ धम्मिओ कह णु ? ॥१२८॥ ७१५१॥ दोसाण आग च्चि वणिज्जइ सो हु सत्थयारेहिं । परदारपसत्तमई, सो कह वणिजए सगुणो ? ॥ १२९ ॥ ७१५२ ॥ जो पत्थणापसत्तो वारंवार पडेइ पाएसु । परथीणं चाडुकरो, अहिमाणी भन्नए कह सो ? ॥१३०॥७१५३॥ जो परदारं पत्थइ अणेगसत्थेसु निंदियं पावो । नाणफलवज्जियस्स उ वियड्रिढमा तस्स का होउ ? ॥१३१॥७१५४ ॥ नीसेसाओ कलाओ गलति परनारिसत्तचित्तस्स । कज्जम्मि समावडिए, कहं नु कुसलत्तणं तासु ? ॥ १३२ ।। ७१५५॥ जो पुण होइ कुलीणो सो न वि एवंविहं समायरइ । परणारिपसत्तस्स उ कुलीणया दूरमोसरिया ॥ १३३ ॥ ७१५६॥ अन्नं च सावियाओ ! तुब्भे सययं वियारनिउणाओ । ता कह जंपह एयं धम्मविरुद्धं महापावं ? ॥ १३४ ॥७१५७॥ गुरुदेवयाविदिन्न कंत मोत्तूण लग्गए अन्नो । जइ पर मज्झ तणुम्मि जलंतजालो महाजलणो ॥१३५॥७१५८॥ ता सावियाण तुम्हं जिणवयणसुभावियाण निउणाण | चिंतेउं पि ण जुत्तं, अच्छउ पुण जंपिंउं एवं ' ॥ १३६ ॥ ७१५९॥ इय तीए वयणमायण्णिऊण रोमंचकंचुइज्जतो । सो सुद्दगो पर्यपइ हरिसभरापूरिओ संतो ॥१३७॥७१६०॥ १. मभिल का० ॥ *********** सावगस्स सुद्दगस्स अक्खाणयं ८६७
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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