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सिरिसंतिनाहचरिए
सावगस्स सुद्दगस्स अक्खाणयं
तुंगरहवरमुक्कवेगेण मंजीरयघणघणियसारहीहिं वरतुरयचोइय धुव्वतधयवडनिवहपडिरहाण पुणु नेवि ढोविय । । सहड वि सहडहं अभिडिय बहबक्काररवडढ मंचहिं दारुणसरनियर गुणहं करता कडढ ॥१५॥७११९॥
एवं सुहडहं तणइ संगामि वस॒तइ पडहिं धयचिंध छत्तछिज्जंतसत्थहिं, सिरिसुहडहं मुहगयह लुढहिं महिहिं दीसंतखत्थेहिं । गयवर-हयवर-नरवरहं लोट्टहिं महिहिं कबंध, विज्जाकप्पिय तह भडहं दिजहिं विसहरबंध ॥९६॥७१२०॥ धरणिमंडिय सीसकमलेहिं नारायहि तोमरहिं खग्ग-सेल्ल-वावल्ल-कुंतहिं, आयासु वि मंडियउं आमिसऽत्थिबहुविहसउतेहिं । ५ तह समरंगणपेच्छियहिं सुर-किन्नर-सिद्धेहिं, दीसइ गयणु रमाउलउं अनुखेयरविंदेहिं ॥९७॥७१२१॥ सुहड जंपिउ अन्नसुहडेण, रे! पहरहि अज महु काई भमहिं कायरहं पुटुिहिं, नासंतहं पहरियइ किं कया विरे! किर विसिटिहिं। जाणउं तई पर वरसुहडु जइ महु ढुक्कहि अज्जु, जिं साहिज्जइ नित्तुलउ सामिहिं केरउ कञ्जु' ॥९८॥७१२२॥ तेण जंपिउ 'काइ गजेहि, घणु जेंव जलवज्जियउ पहरि पहरि जें गणमि पोरिसु, अच्चुक्कडु सत्तु तुहं जइ चएहि तो अज्ज आलसु । न वि हउ कइय वि पहरियउ पहरिअ दिन्नइ वीर'! इय भणियइ सो पडिभणइ 'साहु साहु तुहुं वीर ॥९९॥७१२३॥ १० सहहि संपइ भद्द! मह घाउ', इय भणियइ पगुणुह इयर सुहडु रोमंचियंगउ, इयरेण वि दिन्नुपुणु पहरु तासु सो अंगि लग्गउ। इय जुल्झंता दो वि भड ते पहरहिं अन्नोन्नु, पडिया दोन्नि वि धरणियलि जीविं जाहं न गनु ॥१००॥७१२४॥ १. पुण नोयि का० । पुण नेवि जे० ।। २. सत्यिहि जे० । सत्येहिं का० ।। ३. बहु सम जे० ।। ४. अयुबाड सत्तु पा० विना ।। ५. तुहं पा० ।। ६. धीर पा० ।। ७. लग्गइ का० ।।
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