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________________ सिरिसंतिनाहचरिए सावगस्स सुद्दगस्स अक्खाणयं सुघणपक्खरविहियवरतुरयहिंसारवभरियनह खणियखोणिखुररवसमुद्धर अविलाण खंचियवयणचमरसोहसोहियसुबंधुर । पंचामेलयथासयहिं कयअचंतविसट्ट, सन्नद्धई एवंविहई चंचलतुरयहं थट्ट ॥९०॥७११४॥ पवरवेइयसोहरमणिज्ज मंजीरयरवमुहल नंदितरपूरियदियंतर कयकिंकिणिगणकणिरधयवडोलिसोहिय निरंतर । नाणाविहआउहनियरपूरियरहसंगल्लि, चउहयजोत्तियसन्नहहिं निरु कयपेल्लावेल्लि ॥९१॥७११५॥ कुंत-कडतल-खग्ग-सरण्झसर-नाराय-धणु-गहियकरु, सेल्ल-भल्ल-वावल्लभीसणु कयतणुरक्खियसिरधरणु । हक्क-पोक्कपोक्कारभीसणु, तडियभिउडितिवलीतरलु, पाइक्कहं बरसेन्नु, सन्नद्धउ संगामरसु जसु न वि नजइ गन्नु ॥१२॥७११६॥ पडह-मद्दल-करडतल-तिलिम-कंसाल-डमरुयगहिर, बुक्क-भेरि-झल्लरिवमाउल अइरुद्दसरपसरभरवजमाणतूरहिं भयाउल । दोन्नि वि सेन्नई संवहियबहुजयसिरिभरलुद्ध, जाहं पियारा हुंति पर नरवइ सुहडहं जुद्ध ॥९३॥७११७॥ मिलियजयसिरिलुद्ध दोण्हं पि अग्गाणियसिरिदलहं समरतूरदोहिं पि आहय, चलचवलनायगवसिण खणहि खोणि धावंतवरहय । गयवरधावियघडहडियवरगुडगुडियसुदेह । दाणबिंदुपरिसित्तमहिनं नवपाउसि मेह ॥९४॥७११८॥ १. कडतूल जे० । कडल का० ।। २. सरभस का० । °सरजस जे० ।। ३. पुक्कपुकार जे० ।। ४. तूरिहिं पा० विना ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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