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________________ सिरिसंतिनाहचरिए मंगलकलसकहाणयं राया वि चिंतए "हंत ! अइगरुयं सोगकारणं । किंपि एयस्स मंतिस्स तहा वी पुच्छिमो इम" ॥२२२॥३३१॥ चिंतिउं जंपए 'भद्द ! जैइ एवं, तहावि मे । कहेहि कारणं एयं मा गृहेहि ममऽग्गओ' ॥२२३॥३३२॥ मंती वि जंपई 'देव ! असद्धेय पि सीसइ । तुम्हाऽऽएसो त्ति काऊणं कजमेयं जहट्ठियं ॥२२४॥३३३॥ * परिणेउ कन्नयं तुम्ह, मज्झ पुत्तो गिह गओ। जाव ताव खणद्धेण महाकुडि व्य दीसइ ॥२२५॥३३४॥ * तुभं धूयाए माहप्पं किंचि एयं अउव्वयं । जं करप्फंसमेत्तेण पइणो एवंविहा गई' ॥२२६॥३३५॥ तं सोउ सुटुरुटेण रण्णा एवं पयंपियं । 'अलक्खणा इमा पावा नररयणविणासिया ॥२२७॥३३६॥ दिट्ठीमग्गे वि सा मज्झ नाऽऽणेयव्या अभग्गिया' । देवीहिं पि परिच्चत्ता जइ वि अचंतवल्लहा ॥२२८॥३३७॥ तओ मायाए गेहस्स पुट्ठीए सो नियस्स उ । उवरगम्मि एगम्मि अवन्नाएं वि धारिया ॥२२९॥३३८॥ सोऊणं सा वि तं बाला चित्ते अचंतदूमिया । "हा ! किमेव महापावं कम्मं मम उवढियं ॥२३०॥३३९॥ एकं ताव ण सो भत्ता जेण वीवाहिया अहं । बीयं दुव्विसह एवं कलंक समुवट्ठियं" ॥२३१॥३४०॥ एवं चिंतापवण्णाए दुक्खक्वंताए अन्नया । चित्तम्मि से ज्यिं झत्ति जं तया तेण जंपियं ॥२३२॥३४१॥ "अचंतसोहणा एए मोयगा किंतु जोग्गया। उज्जेणीए सलिलस्स, कयाई तत्थ सो भवे?" ॥२३३॥३४२॥ १. जइ वि एवं जे० विना ।। २. सा णिवेसिउं का०।। ३. °ए ऽवधारिया का० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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