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________________ सिरिसंतिनाहचरिए रजस्स इमानीई पिया वि जं रज्जसंठियं पुत्तं । पणमइ ता तुज्झ मए उवविससु कओ पणामो त्ति' ॥ ११२ ॥ ६९६३ ॥ तो उत्ता सीहासम्म गहिउं करे निवेसेइ । तं सूरपालरायं महिवालो नीइविन्नाया ॥११३॥६९६४॥ सीलमई विहु भणिया महिपालेणं पिएहिं वयणेहिं । 'पुत्त ! तुमं चिय एक्का धन्ना इह जीवलोगम्मि ॥ ११४ ॥६९६५॥ जी मोरहाणं सव्वाण व चिंतियाण संपत्ती । जाया असंभवाण वि ता थीरयणं तुमं वच्छे ! ॥११५॥ ६९६६ ॥ जं च तुमेनियसीलं अणन्नसरिसं तु रक्खियं तह य। विहिया नियपइआणा तं तुह सरिसा उ का अन्ना ? ॥ ११६ ॥ ६९६७॥ चतु परिभूया अणक्खवसवत्तिणा तयं सव्यं । खमियव्वं किंच तयं ममेवं दुहकारणं जायं' ॥११७॥६९६८॥ तो जंपइ सीलमई ‘ताय ! पयंपेहि मा इमं वयणं । मह अवमाणो वि जओ मणोरहाऽऽपूरगो जाओ ॥११८॥ ६९६९ ॥ गुरुयणअवमाणो वि हु मणवंछियकारओ भवे निययं । जह मह चेव य जाओ, 'ता एत्थं कुणह मा खेयं ॥ ११९ ॥ ६९७० ॥ जइ तइया अवमाणं न हुदंसेतो तुमं महं ताय ! । ता कह निग्गच्छंतो विजयाए एस तुह पुत्तो ? ॥ १२० ॥ ६९७१॥ कहवा वि हु पावेतो र ? कह वा वि गोरवं तुम्ह। एस करंतो ? कह वा पूरंतो मज्झ मणरुइयं ? ॥ १२१ ॥ ६९७२ ॥ इयताय ! तुझ निययं मह अवमाणणतरुस्स फलमेयं । “गुरुअवमाणो वि जए आसीसो होइ किर" एस ॥। १२२ ।। ६९७३ ॥ जो लोयम्मि पाओ वुच्चतो आसि एत्तियं कालं । सो मह चित्तम्मि धुवं विणिच्छिओ अज संजाओ || १२३ ||६९७४॥ १. उडित्ता पा० विना ॥। २. व बहु कारणं पा० । ३. पूरणो जे० ॥। ४. दंसंतो पा० विना ।। रण्णो सूरपालस्स अक्खाणयं ८३२
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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