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सिरिसंतिनाहचरिए
भणिया य मज्झ हत्थेण चेव एसा पुणों वि मोत्तव्वा । एत्तियमेत्तं मोत्तुं, न हु अन्नं किंपि जाणामि ॥५३॥६९०४॥ ता सव्वाण विचित्तम्मि संप्रियं "जेणिमा परिब्भूया | अंबाए तेणेसो अवमाणेणं गओ होही ॥ ५४ ॥ ६९०५ ॥ जम्हा अवमाणया पुरिसा नियजीवियं पिछडेति । अच्छउ देसच्चाओ जेणं लोया भणतेवं ॥ ५५ ॥ ६९०६ ॥ "माणि पणटुइ जइ न तणु तो देसडा बेइज्ज । मा दुज्जणकरपल्लविहिं दंसिजंतु भमिज" || ५६ ॥ ६९०७ ॥ जे के वि हु इह पुरिसा वयंति देसतराई दीहाई । ते केणाऽवि हु नियमा चित्तऽभिमाणेण वच्चति ॥ ५७ ॥ ६९०८ ॥ जणि जणयं बंधु भजे गेहं धणं च धन्नं च । अवमाणहया पुरिसा विसं व दूरेण छडुंति ॥ ५८ ॥ ६९०९ ॥ माया- वित्तकयं पिह अवमाणं अहव सामिविहियं च । माणधणाणं जायइ नियदेसच्चायहेउ ति ॥५९॥ ६९१० ॥ मोत्तुं गुरु अवमाण सेसं सव्वं पि मुणह एरिसयं । गुरुणो पुण हियहेउं सीसस्स कुणंति अवमाणं ॥ ६० ॥ ६९११॥ किर सप्पदंतचक्कलयगणणउवएसणं पि सीसस्स । देति हियत्थं गुरुणो अच्छउ अवमाणणाईयं ॥ ६१ ॥ ६९१२॥ एयस्स उ अवमाणो देसच्चायस्स कारणं जाओ । जम्हा भज्जऽवमाणो परमत्येणं कओ तस्स" ॥६२॥ ६९१३॥ एवं परिभावेउं गवेसणं तो पुणो वि काऊणं । नियधम्मकम्मनिरया जाया तव्विरहदुक्खत्ता ॥६३॥६९१४॥
सो वि सूरपालो अणवरयपयाणएहिं वच्चतो नाणाविहगाम - नगराऽऽगराई पेच्छतो अणेगप्पगारसरियापव्यया
१. बएज का० ॥
रण्णो
सूरपालस्स
अक्खाणयं
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