________________
वणिणो गंगदत्तस्स अखाणयं
सिरिसंति- तत्तो चविऊण इमो बहुसोक्खपरंपरेण मोक्खसुहं । पाविस्सई कमेणं दढसामइयाइकरणाओ" ॥९९॥६७४६॥ नाहचरिए देसावगासियवयं बीयं सिक्खावयं मुणेयव्यं । दिसिवयपमाणसंखेवकरणओ होइ विन्नेयं ॥१॥६७४७॥
अहवा सव्ववयाणं संखेवो होइ एत्थ नायव्यो । 'पुढविं न खणामि अहं' इचाइपमाणकरणाओ ॥२॥६७४८॥ एत्थ य पुण विन्नेया अइयारा पंच वजणिज्जा उ । आणवणम्मि पओगो पेसवणे चेव नायब्वो ॥३॥६७४९॥ सदस्स उ अणुवाओ विन्नेओ होइ तह य रूवस्स । बहिया पोग्गलखेवो पंचमओ होइ अइयारो ॥४॥६७५०॥
एयं तु सुद्धरूवं कायव्वं जेण बहुफलं होइ । इहलोए परलोए जह जायं गंगदत्तस्स ॥५॥६७५१॥ ॐ "एत्थेव य भरहम्मि संखउरे गंगदत्तवरनामो । आसि वणी विक्खाओ, अहऽन्नया तेण गुरुपासे ॥१॥६७५२॥
गहिओ सावगधम्मो पंचाणुव्वय-गुणव्वयाईओ । पालेइ निरइयारं तं धम्मं धम्मबुद्धीए ॥२॥६७५३॥ अह अन्नया कयाई तेणं देसावगासियं गहियं । जह 'गेहाओ बाहिं न निग्गमो चेइयं मोत्तुं' ॥३॥६७५४॥ गेहम्मि यिस्स तओ समागओ वाणिओ तहिं एगो । तेण य सिटुं 'भाउय ! अजं नयरस्स बहि पत्तो ॥४॥६७५५॥ एगो महंतसत्थो महग्घबहुपणियपूरिओ पवरो । तत्थ गयाणं जायइ लाभो लक्खेहिं णिभंतं ॥५॥६७५६॥ ता आगच्छसु जेणं संचक्कारेमु बहुविहं भंडं। तं उटुसु जावऽज्ज वि महायणं जाइ नो तत्थ' ॥६॥६७५७॥
८०२
१. पि जे० का || २. सव्वं कारेमु का० ।। ३. ता का०॥