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________________ सिरिसंतिजिणिंदस्स देसणा सिरिसंति- ता परिभोगे एवं अपरिमिए दूसणं मुणेऊण । कुणह सया परिमाणं उवभोगे तह य परिभोगे ॥१॥६६४८॥ नाहचरिए * तइयं गुणव्वयं पुण अणत्थडंडस्स होइ जा विरई । तं भिजंतं कमसो चउभेयं होइ विन्नेयं ॥२॥६६४९॥ तत्थ य ज अवझाणं पढमो भेओ इमो मुणेयव्यो । जं तु पमायाचरियं तं बीयं मुणह भेयवसा ॥३॥६६५०॥ हिंसप्पयाणनाम तइज्जयं, पावकम्मउवएसो । होइ चउत्थो एयं अणत्थदंडब्बयसरूवं ॥४॥६६५१॥ अटेण तं न वज्झइ, वज्झइ जमणटुओ उ किर पावं । कालाईया अढे नियामगा, णो अणडाए ॥५॥६६५२॥ एत्थ वि य अईयारे सुणसु इमे पंच इह कहिजते । जे कंदप्पो कीरइ पढमो, बीओ उ कुक्कुइयं ॥६॥६६५३॥ मोहरियणाम तइओ, चउत्थओ संजुयाहिगरणं तु । उवभोग-परीभोगे अइरेगो पंचमऽइयारो ॥७॥६६५४॥ एत्थं पि उदाहरणं कहेमि तुम्हाण किंचि लेसेणं । "धायइसंडे दीवे भारहखेत्तम्मि सुपसिद्धं ॥१॥६६५५॥ * अत्थि पुरं पोराणं कणगपुरं नाम दसदिसिपयासं । तं परिपालइ राया पयडो रिउमद्दणो नाम ॥२॥६६५६॥ तस्स य भजा अंतेउरस्स मज्झम्मि जा उ सुपसिद्धा । केउसिरी नामेणं अचं सुंदरावयवा ॥३॥६६५७॥ तत्थ य समिद्धदत्तो निवसइ कोडुबिओ सुविक्खाओ । पालइ निययकुटुंब नियकुलकमवित्तिकरणेणं ॥४॥६६५८॥ अह अन्नम्मि दिणम्मि सुत्तेण जाव जग्गिय तेण । ता चिंतिउमाढत्तो अवझाणं एरिसं एसो ॥५॥६६५९॥ "जइ मज्झ होइ रजं तो हं राया भवामि विक्खाओ । साहेमि तओ सव्वं छक्खंडं भरहवासमिणं ॥६॥६६६०॥ ७९४
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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