SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 813
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिसंतिनाहचरिए इय चिंतिऊण एसो संखेवेणं करेइ किच्चाई । सुलसस्स वि जं वित्तं तं एत्तो भो ! निसामेह || २०४ ||६४१३॥ जाव न सो हुंकारं देइ तओ मुणइ सुलससड्ढो वि । जह "पत्तो देवत्तं होही एसो न संदेहो ” ॥ २०५ ॥ ६४१४॥ तो मन्नुभरभरिजंतमाणसो गग्गरेण कंडेण । रोवइ उच्चसरेण इमाई वयणाई जंपतो ॥ २०६॥६४१५॥ ‘हा साहम्मियबंधव ! जिणसेहर ! सयलगुणगणावास ! । कत्थ तुमं मं दीणं मोत्तूणं पवसिओ एगं ? ॥२०७॥६४१६॥ हा ! हा ! हा ! वरसावय ! आवयपडियं ममं पि मोत्तूण । जं बच्चसि सुरलोए, तं किं तुह एरिस जुत्तं ? ॥२०८॥६४१७॥ ५ नरओवम्मि कूवम्मि निवडियं मेल्लिऊण जं सि गओ । सुपुरिस ! तं तुह गरुयं होही वयणिज्जयं एयं' ॥ २०९॥६४१८॥ विलवित्तु खणं एवं सयमेव य संवेइ अप्पाणं । जह “जीव ! कहं सोयसि, जो कालगओ समाहीए ॥ २१०६४१९॥ किंच रुयंतस्स महं जइ सा आगच्छए कह वि गोहा । ता तसिऊणं वच्चइ तम्हा सेयं परं मोणं ॥ २११ ॥ ६४२०॥ एवं जा मोणेण थक्को अह खरखरं सुणेऊण । जाओ य सावहाणो ता पत्ता झत्ति सा गोहा ॥ २१२ ॥ ६४२१॥ पाऊण य रसनीरं सा बलिया ताव झत्ति पुंछम्मि । गहिया सुलसेण दढं भयभीया जाइ तो सिग्घं ॥२१३॥६४२२॥ सुलसो वि तम्मि विवरे कहिंचि उब्भो, निसन्नओ कहिंचि । कत्थ वि सुत्तो बच्चइ रगडिजंतो घसितो ॥ २१४॥ ६४२३॥ एव महाकट्टेणं विणिग्गओ विवरमज्झयाराओ । गिरि-तरु-सूरे य दट्टु आससिओ मेल्लए गोहं ॥२१५॥६४२४॥ १. "तरुबरे पा० ।। १० ****** सुलससावगस्स अक्खाणयं ७६३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy