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सिरिसंतिनाहचरिए
गहियाणि काई पि वयाणि, न य गहिया परिग्गहपरिमाणविरई । न य रज्जए विसएसु कलागहणाइलालसो । तं च तारसं बिसएस अरजमाणं दण भणिओ उसभदत्तो जिणदेवीए, अवि
'सामिय ! एसोऽम्ह सुओ दीसइ विसएसु निप्पिहो धणियं । ता तह करेहि पिययम ! विसएसु मणं जहा कुणई' ॥५॥६२१४॥ तो भइ उभदत्तो 'पिययमि ! मा भणसु एरिसं वयणं । को रुक्खाणं हेडा वालइ बालो वि पयणा ॥६॥ ६२१५॥ नय को विपत्तिम्मिं पक्खिवइ तणाण पूलयं कंते ! । ता मा मंतेसु इमं सयमेव करिस्सए एयं ॥ ७॥६२१६ ॥ म्हासिए जो सयमेव पयट्टए असिक्खविओ । बहुभव अब्भत्थेसुं, ता किं किर तत्थ जत्तेणं ? ॥८॥ ६२१७॥ जंपइ पुणो वि एसा 'नाह ! किमेएण अम्ह दव्वेण ? । जइ नवि विलसइ एसो, पाहाणसमं तओ एवं ' ॥९॥६२१८॥ नाऊण आगह तो तीए सेट्ठी वि तं नियं पुत्तं । हक्कारिय पक्खिवई दुल्ललियाए उ गोट्ठीए ||१०||६२१९॥
ओ तीए गोट्ठीए नीओ सो बाहिरुञ्जाण-काणणाईसु । तत्थ कयाइ पत्त- पुप्फ-फल-तया - कंद-मूल- लया - वल्लिगेण्ह - १० वावडरस, कयाइ सरोवर- पोक्खरिणि नइ - कूबमाइएसु पउमिणीपत्त- भिस- मुणाल- उप्पल सयवत्त- सहस्सवत्ताइगहलंपडस्स, कयाइ नयरमज्झट्ठियतिय- चउक्क-चच्चर - चउम्मुह-महापह-महादेवउलरम्मपेच्छणयदंसणुप्पेहडस्स
१. मुणसु पा० ।। २. चालइ वालो जे० ॥। ३. तो पा० ॥ ४. 'बरपुक्ख का० ॥ ५. 'समणा' जे० ||
जाव
सुलससावगस्स अक्खाणयं
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