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________________ सीलवईअ पुव्वभववुत्तंतं सिरिसंति- कह मह वयण अलिय होउ? इमाणि वि भणंति सरिसमिणं' । एवं वयणविरोहो संजाओ अह चउण्हं पि॥४८॥६१६८॥ नाहचरिए एवंविहम्मि य तओ वयणविरोहम्मि वट्टमाणम्मि । मिलिओ असेससयणो, ण य सो णिचालिउं तरइ ॥४९॥६१४९॥ एवं च महविवाए वटुंते कन्नगा इमं सोउं । चिंतइ "हा ! कह जाओ हंत विवाओ कुटुंबस्स ॥५०॥६१५०॥ ता संवरेमि एयं विवायमहमप्पयं विणासेउं" । इय चिंतिय णिग्गच्छइ गेहाओ मरणकयचित्ता ॥५१॥६१५१॥ "उब्बंधणं विहेमि" ति चिंतिउं जाव जाइ उज्जाणे । ता पेच्छइ वरसूरिं धम्म लोयाण कहयंत ॥५२॥६१५२॥ * तं दटुणं चिंतइ “धन्ना एए महाणुभाव त्ति । मूलाओ जेहिं चत्तो एसो विसयाण संगो त्ति ॥५३॥६१५३॥ विसयासत्ताण पुणो नाणारूवाणि होति दुक्खाणि । जह मज्झ चेव जाय, एयं असमंजसं सव्वं ॥५४॥६१५४॥ ता एयाणं पाए वंदामि दुक्खणिग्गहसमत्थे । पुच्छामि य जे उचिय" इय चिंतिय जाइ गुरुपासे ॥५५॥६१५५॥ वंदित्ता विणएणं उवविट्ठा भत्तिनिब्भरा धणियं । जा किर पुच्छइ ताव य गुरुणा मुणिऊण नाणाओ॥५६॥६१५६॥ ॐ भणिया 'किं चिंताए अच्छसि चिंताउरा तुम भद्दे ! । मरणम्मि य कयचित्ता? तो चय एवं विसयसंग ॥५७॥६१५७॥ * जेण दहभाइणी तं न होसि जम्मंतरे वि ता सिग्छ । पडिवज्ज सबविरई' इय भणिए रंजिया बाला ॥५८॥६१५८॥ जंपइ जोडियहत्था 'अहह अहो सामि ! तुम्ह विप्फुरइ । विम्हावियतेलोकं नाणं सव्वत्थ अक्खलियं ॥५९॥६१५९॥ ता जा जणयाईए आपुच्छामि गिहम्मि गंतूर्ण । ता पहु ! तुम्हाऽऽएस आगंतूणं करिस्सामि ॥६०॥६१६०॥ ७२७
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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