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________________ सीलवईअ पुव्वभववुत्तंतं सिरिसंति- निययाऽभिप्पाएणं जाणेइ धरो मए विदिन्नाए । कन्नाए लग्गमिणं, एवं सेसाणि वि मुणति ॥३५॥६१५६॥ नाहचरिए तत्तो तुटुमणाई जाणावती णियाण वरयाण । ते विहु तम्मि दिणम्मि संवहिउं इंति तत्थ पुरे ॥३६॥६१५७॥ पविसंति चउण्ह पि हु तणया बद्धावया समं चेव । वद्धावति य सेटुिं 'समागया जन्नयत्त' त्ति ॥३७॥६१५८॥ बद्धावयपुरिसाणं जुयलचउक्कं निएवि तो सेट्ठी । अचंत विम्हइओ चित्तम्मि वियक्कए एवं ॥३८॥६१५९॥ "हंत ! किमयं दीसइ महऽभुयं, जेण जन्नयत्ताओ । चत्तारि समायाओ, वरसेटुिसुयाण तणियाओ ॥३९॥६१६०॥ एक्कस्सेव पुण मए दिन्ना कन्ना, अओ किमन्नाओ?"। जावेवं परिचिंतइ ता भणिओ भाउणा नमिउं ॥४०॥६१६१॥ 'किं न वि अजवि दिजइ ठाणं किर भाइ ! जन्नयत्ताए ?'। सो भणइ 'कह चउण्हं ठाणमहं संपयच्छामि ?' ॥४१॥६१६२॥ पइ इमो वि 'एक्कस्स चेव दिन्ना मए किमन्नाओ?' जा देइ उत्तरं न वि अज वि लहुभाउणो सेट्ठी ॥४२॥६१६३॥ ता एवं चिय भणिओ एसो सहस त्ति पुत्त-पुत्तीहिं । तो जाणियपरमत्थो जंपइ सेट्ठी वि वयणमिणं ॥४३॥६१६४॥ "किंतुदभेहिं न नाओ, अहयं सामग्गियं करेमाणो?'। इयरेहिं वि पडिभणियं 'नाओ, पर किंतु न वि नायं ॥४४॥६१६५॥ जह अन्नेहिं वि दिन्ना कन्ना एस त्ति नेय अम्हाणं । गोत्तम्मि समायारो जे कुंकुमपत्तियालिहणं ॥४५॥६१६६॥ हक्कारणमेत्तं चिय तं पुण दिन्नं असेसएहि पि । जा पुण तुह सामग्गी सा नाया अप्पविसय' त्ति ॥४६॥६१६७॥ . इय जंपियम्मि तेहिं सेट्ठी चिंताउरो दढं जाओ । पुच्छइ 'ता कहमेयं, एव ठिए कीरऊ कजं ? ॥४७॥६१६८॥ ७२६
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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