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________________ सिरिसंतिनाहचरिए ईइ जं जं चिय किंचि वि कामिणिदेहम्मि बालसुहजणयं । तं तं पंडियलोओ भावइ संवेगरसठाणं ॥६४॥५७५३॥ एवं तत्तसरूवं इत्थीण कलेवराण भावेउं । तव्विरएसुं व पुणो, बहुमाणं भावए हियए ॥ ६५ ॥ ५७५४ || "ताण नमो, ताण नमो, दासो हं ताण संजमधराणं । अद्धच्छिपिच्छिरीओ जाण न हियए खुडुक्कंति ॥ ६६ ॥ ५७५५॥ धन्ना ते धन्ना ते धन्ना एत्थ जीवलोगम्मि । जे पवरकामिणीहिं न मोहिया कहवि कइया वि ||६७ ॥ ५७५६ ॥ थीअंगोवंगाई पैसढं दटूण जाण न वि खुहियं । तव संजमाओ चित्तं, नमो नमो ताण धीराण ||६८|| ५७५७॥ कामिणिक्खविक्खेवतिक्खसरधोरणीए इह जाण । सीलकवयं न भिन्नं, सिरसा वंदामि ते णिचं ॥ ६९ ॥ ५७५८ ।। सकयत्था सकयत्था सकयत्था ते इहं समणसीहा । जे मणमोहणवल्लीहिं मोहिया नो पुरंधीहिं” ॥ ७० ॥ ५७५९ ॥ इय एवं बहुमाणं काऊणं थीविरत्तचित्तेसु । निद्दामोक्खं सच्चो विहिऊणं जग्गए पुण वि ॥ ७१ ॥ ५७६० ॥ रवि सुमपयत्थे भाव, पुव्युत्तमेव पुण कुणइ । एवं जा जंति दिणा ता जं जायं तयं सुणह || ७२ ॥ ५७६१ ॥ जो सो भावनामो भाया सच्चस्स वण्णिओ पुव्विं । सो पवहणेण चलिओ अत्थत्थी जलहिपरतीरं ॥ ७३ ॥ ५७६२ ॥ तो सच्चेणं वृत्तो 'मा वच्छय ! जाहि जलहिपारम्मि । अइगरुयपच्चवाए तहा महापावपसरकरे ॥७४॥ ५७६३॥ यहं तुज्झ विओयं सहिउं सक्केमि भाय ! मणयं पि । तत एत्थेव य हट्टे बबहारं कुणसु मइ' ॥७५॥५७६४॥ १. इय जे० विना ।। २. अद्धच्छपेच्छि° पा० ॥। ३. पढमं का० ॥ ४. भाइ जे० || सच्चस्स अक्खाणयं ६९०
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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