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गंधव्वनागदत्तस्स अक्खाणय
सिरिसंति- जइ पुण गिण्हामि अहं विगईओ कहवि तो उइज्जंति । विसया, तेण न गिण्हे, अच्चाहारो वि नो सहइ ।।९४॥५४३८॥ नाहचरिए तह अंतपतयाई निचं भत्ताइं जायमायाए । भुंजामि अद्धपच्चट्ठियं च न कयाइ पडिपुण्णं ॥९५॥५४३९॥
अरसाई विरसाई निजीवाइं पिबेमि पाणाई । जइ न वि करेमि एवं तो लेइ पुणो गरं उदयं ॥९६॥५४४०।। किंच- कइया वि हु सेलम्मि, कइया बि हु काणणम्मि चिट्ठामि । कइया वि पुण मसाणे, कइया वि हु सुन्नगेहम्मि ॥९७॥५४४१॥
कइया वि हु देवउले, कइया वि हु गिरिणईए पुलिणम्मि । कइया विरुक्खमूले, कइया वि तिए चउक्कम्मि ॥९८॥५४४२॥ ५ ॐ कइया वि चच्चरम्मी चिट्ठामि विचित्तआसणेहिं अहं । झाणं झियायमाणो धम्म, विसहामि उवसग्गे ॥१९॥५४४३॥
अहियासेमि य अहयं परीसहे राग-दोसमज्झत्थो । अन्न पि एवमाई करेमि किरियं बहुपयारं ॥१००॥५४४४॥ एवं च मज्झ चिटुंतयस्स एए वसम्मि चिटुंति । पावाहीणं तहवि हु खणमवि न उवेमि वीसंभ ॥१०१॥५४४५॥ जो थेवयआहारो थोययभणिओ य थोयनिद्दो य । अच्छंतु ताव एए, देवा वि हु हुति तस्स वसे ॥१०२॥५४४६॥ किं बहुणा भणिएण? जइ चिटुइ एरिसाए किरियाए । तो जीवावेमि इमं, अन्नह निस्संसयं मरई" ॥१०३॥५४४७॥
तो सयणेणं भणियं 'जीवउ, एवं पि होउ एयं' ति । भणइ इमो 'जइ एवं, करेमि किरियं इमस्स तओ ॥१०४॥५४४८॥ * मंडलमालिहिऊणं ज्वेइ गंधवनागदत्तं तु । लोयाण पच्चयत्थं उच्चारइ अह महाविजं ॥१०५॥५४४९॥ अवि य
१. य पा० ।। २. सम्मं च सहा ३० सम्म विसहा जाय ॥ ३. बटुंति पा० विना ।। ४. नीसंसर्व जे० विना ।। ५. अवि य नास्ति २०॥