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सिरिसंतिनाहचरिए
गुणधम्मस्स कहाणय
तो तेण समं भोए भुजंतीए य धम्मरहियाए । पावपसत्ताए दढं चक्काउह ! वच्चए कालो ॥१९९॥५०९९॥ अह वच्चंते काले तीए वसवत्तिणं पई दटुं । गुणचंदभारियाहिं मिलिउं आलोचियं एयं ॥२००॥५१००॥ जह "एस अम्ह भत्ता एईए वसीकओ जहा अम्ह । अचंतऽणरत्ताण वि सुमिणे वि ण गिण्हए णाम ॥२०१॥५१०१॥ ता एयं मारेमो विसप्पओगाइएण केणाऽवि । जेणेवंविहदक्खं ण कुणइ अम्हाण पच्चक्खं ॥२०२॥५१०२॥ अन्नासत्ते दइए पञ्चक्खे चेव दीसमाणम्मि । होइ महतं दुक्ख पढिज्जए जेण लोगम्मि" ॥२०३॥५१०३।। अवि य– ५ "वरि हय, वरि मय, वरि म जाय, वरि विसहरिं खद्धी, वरि उडभी सूलियहिं भिन्न, वरि अग्गिहिं दद्धी। वरि अणियाला धगधगेंत मह हियइ पइट्ठा, म एकं गणि बहिणि ! नाहु अन्नई सहुं दिवा" ॥२०४॥५१०४॥ आलोचिऊण एवं विसप्पओगेण मारिया एसा । 'ताहिं कयं' जाणंती ताणुवरि रुद्दझाणम्मि ॥२०५॥५१०५॥ . मरिऊण गया नरए चउत्थपुढवीए सा महापावा । संजाया णेरइओ, उव्वट्टित्ताण सा तत्तो ॥२०६॥५१०६॥ भमिही पभूयकालं संसारे दुक्खपीडिया संती । ता चक्काउह ! एवं विसयपमाओ दुहं देइ ॥२०७॥५१०७॥ ता उज्झिऊण एयं धम्मम्मि समुज्जएहिं होयव्वं" । संपइ तइयपमायं साहिप्पतं निसामेहि ॥२०८॥५१०८॥
॥ गुणधम्म-कणयवईकहाणयं समत्तं ॥ १. मिलियं जे० ० ।। २. सुविणे का० ।। ३. हरि खड़ी पा० विना ॥ ४. धगधर्गित त्रु० । धगधगत का० ।। ५. महु पा० विना ॥ ६. गुणधर्मकनकवतीकथानकं समाप्तम् ? पा०दिना ।।
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