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________________ सिरिसंतिनाहचरिए जंपइ 'वच्छे! सो तुह भत्ता केणाऽवि कारणवसेण । कत्थ वि गओ न नज्जइ बत्ता वि ण लब्भए जम्हा' ॥ १८७ ॥ ५०८७॥ तं सोउं सा चिंतइ "नूणं तेणं वियाणिओ होही । जो पंचमम्मि दिवसे संजाओ संखपुरणगरे ॥१८८॥५०८८ ॥ तेण कुमारेण समं संजोओ मज्झ दूयवयणेहिं । तेणेत्थ ममं मोत्तुं ओसरिऊणं कहिं पि गओ || १८९ ।। ५०८९ ॥ हवा व सूरिवयणा आसि तइया वि सो हु संविग्गो । तेण गहिस्सइ दिक्खं गंतूणं गुरुसमीवम्भि ॥ १९०॥। ५०९० ।। ता होउ सोहणमिमं संपइ णिस्संकियं महं जायं । ता गुणचंदकुमारं गंतूण करेमि भत्तारं ॥१९१॥५०९१॥ जम्हा तम्मि दिणम्मिं भणाविया तेण अइबहु अहयं । मज्झ वि रुइओ एसो, पर सम्मं जं न पडिवन्नो ।।१९२।।५०९२ ।। तं तस्स मरणभयभीरुयाए इण्हि तु तं भयं णटुं । जेणं सो संविग्गो काही नो मंगुलमिमस्स ॥ १९३॥५०९३॥ ता वंचिऊण एवं जणणीए सहोदरं तहिं जामि" । इय चिंतिऊण कवडेण रोवए पच्चयणिमित्तं ॥ १९४॥ ५०९४।। जंप य मामगो से 'मा पुत्ति ! करेहि चित्तसंतावं । अहयं तहा करिस्सं जह मिलसि नियस्स दइयस्स ॥ १९५ ॥ ५०९५ ॥ थोवेहिं चैव दिवसेहिं' एवं जंपित्तु संम्वइ एयं । सा वि हु कवडेण इमं पडिवज्जइ जंपियं तस्स ॥ १९६ ॥ ५०९६ ॥ दो तिन्निवि दिवसाई बीसासेऊण परियणं सव्वं । रयणीए वंचिऊणं विणिग्गया कह वि सा पावा ॥ १९७ ॥ ५०९७॥ पत्ता य तम्मि नयरे पविसइ कुमरस्स भवणदारम्मि । पडिहारेणं सिट्टे कुमरो वि पवेस तुट्टो || १९८ ॥ ५०९८ ॥ १. संलाबो जे० का० ॥। २. संवेग्गो का० । ३. तो जे० ० ॥। ४. रोयए त्रु० का० ॥ गुणधम्मस्स कहाण ६१८
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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