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________________ सिरिसंतिनाहचरिए T जाणिजइ अवसाणम्मि सुयणु ! भोगेहिं निच्छिओ नरओ । चित्तेहिं तेहिं गमणं जायइ सग्गा -ऽपवग्गे ॥ १४७ ॥५०४७ ॥ जं पुण भणियं 'अइसयनाणि किर पुच्छिऊण काहामो । जं उचियं करणिजं' तं तुमए जंपियं जुत्तं ॥ १४८ ॥ ५०४८ ॥ किंतु जइ अंतराले अचिंतमाहप्पदिव्वजोएण । अन्नं न होइ किंचि वि सुंदरि ! अह अंतरायं ति' ॥ १४९ ॥ ४७४९ ॥ एवं च अणुसासिऊण पबिट्टो नयरे । ठिया य सा बाहिं । कुमारेण वि इओ तओ परिब्भमंतेण जूइयरदेवउले जूइयरपासाओ पावियं मंडयमोल्लं । तत्थ य कारावियाओ दो मंडयकुक्कुडियाओ । ताओ व घेत्तूण गओ जत्थ पएसे ५ सा मुक्का, दिट्ठा ये णेण, अब्भुटुिओ य तीए, कया पाणक्त्तिी, ठियाणि य पहाणतरुवरच्छायाए, लक्खिओ य कुमारेण भाव कणगवईए जहा 'सुन्नहियय' त्ति । तओ णेण चिंतियं जहा "सुमरियमेईए णिययमाणुसाणं भविस्सइ" । तयणंतरं च गओ सो सरीरचिंताए । समागओ य पेच्छइ पायवंतरिओ, जाव य आलिहइ चित्तकम्मम्मि अभिमुहं इत्थि - पुरिसवरजुयलं । घोलइ कंठम्मि तहा पंचमरायस्स हुंकारं ॥ १५० ॥ ४७५०॥ जोएइ दिसाचकं हरिणी इव वाहसलिलपुण्णऽच्छी । वाम करोवरिसंप्रियपुण्णिमससिसरिसवयणिल्ला ॥ १५१ ॥ ४७५१ ॥ १० उम्मुक्कउण्हदीहरनीसासा गिम्हयाललच्छि व्य । अभणत चिय साहइ मयणवियाराउरं चित्तं ॥१५२॥४७५२ ॥ एवंविहं च दद्दूण चिंतियमणेण - "हंत ! किमेयं जमेसा अचंतमयणसरसल्लिय व्ब सवियारा दीसइ ? अहवा 'यणाणी जे० का० ॥ २. अ त्रु० ॥ ३. 'गुस्साणं का० ॥ गुणधम्मस्स कहाणय ६१३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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