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सिरिसंतिनाहचरिए
बारसमं भवग्गहणं
अन्न चत्तारि कुमरीउ विदिसाऽऽगया रूव-लायण्णदिप्पंततणुसंगया । दीवियाओ करे संविधारंतिया झत्ति संपत्त जिणनाहु झायंतिया ॥९५॥४६९५॥ वंदिऊणं जिणं तह य जिणमायरं, नालु कप्पति जिणवरह अइसायरं । खड्ड खणिऊण एगत्थ तं ठाविउं रयणनिवहेण पूरेंति संभाविउं ॥९६॥४६९६॥ उवरि हरियालिया पीढ़ सुविचित्तयं झत्ति बंधति अच्चंतसुविभत्तयं ।
उवविसेऊण नियदिसहिं निरु भत्तिया, दिति मंगलई जिणगुणहु गायंतिया ॥९७॥४६९७॥ अवि य“पयडवि धम्मु असेसु जगि बारह भावण सारु । पव्यावेसइ मुणिपवर देविणु संजमभारु ॥९८॥४६९८॥ तह साहुणि गुणगणकलिय, पुणु सावय गुणवंत । पडिबोहिस्सइ सावियहु धम्मझाणु झायंत ॥९९॥४६९९॥ जा जिण मुणि पडिलाहिसंइ फासुयएसणिएण । असणि पाणिं खाइमिण साइममाईएण ॥१००॥४७००। इय पढमे जि समोसरणि करिसइ चउविह संघु । जो सुमरंतहं अणुदियहु फेडइ सयलु वि विग्घु" ॥१०१॥४७०१॥
मज्झिमरुयगाउ वि चारि देवि आवहिं जिणजम्मणु मणि धरेवि । पुव्युत्तरदाहिणदिसहि ताउ कयलीहर करहिं सुहरिसियाउ ॥१०२॥४७०२॥
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१. पूरिति पा० विना ।। २. सुविवत्त जे० ।। ३. °सहि जे०का०।। ४. असणे पाणे खाइमेण जे० । असणं पाणि खाइमेण का० ।। ५. पढमे चिय समवस ७०।।