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________________ बारसमं सिरिसंतिनाहचरिए भवग्गहणं एवं चिय उत्तरदिसिकुमारि अटेव समागय भावसारि । तह चेव नमंतिय जिणह माय, नियकजि समुजुय गयपमाय ॥८५॥४६८५॥ करपल्लवधरियसुचामराओ उत्तुंगपीणघणथणहराओ । तहिं चेव दिसिहि उवविढियाओ गायंति जिणह गुणहिट्ठियाओ ॥८६॥४६८६॥ अवि य“नाणोवग्गहदयपरमु पढमु कहेसइ दाणु । अइरदेविसिरि ! तुह तणउ देवाऽसुरकयमाणु ॥८७॥४६८७॥ बीयउं सीलु विसिटुयरु जं देव वि न लहंति । जेण विभूसिउ सयलु जगु जे मुणिगण सलहंति ॥८८॥४६८८॥ तइयउं तबु जिणु अक्खिसइ कम्मगहणवणदावु । जेण विलिज्जइ मयणु जिंव बहुभवसंचिउ पावु ॥८९॥४६८९॥ चउथी भावण वन्निसइ जिं उप्पज्जइ भाउ । वारवार भावंताहं करइ ज भवह अभाउ ॥९०॥४६७९०॥ एहु चउब्बिहु धम्मु वरु जो संसारह सारु । सो अक्खेसइ संतिजिणु कयबहुविहवित्थारु ॥९१॥४६९१॥ खंताईहि विहूसियउ जो बरसाहुहुं धम्मु । मूलुत्तरगुणसंजुयउ सो वि कहेसइ रम्मु ॥९२॥४६९२॥ पंचाणुव्वय-तिगुणवय-चउसिक्खावयजुत्तु । अंबि ! महासइ ! संतिजिणु कहिसइ सो वि निरुत्तु ॥९३॥४६९३॥ इय भत्तिभर अम्हि जिणु गायतुं चामर लेवि । उत्तरदिसाकुमारियहु तुहु जाणिज्जसु देवि !" ॥९४॥४६९४॥ ५४४ *१. वीयं सील त्रु० ।। २. तउ जे० ।। ३. पाउ त्रु० ।। ४. चउत्थी का० ।। ५. दृश्यतां चतुर्ध परिशिष्टम् ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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