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सिरिसंतिनाहचरिए
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मज्झम्मि ताण चउसाल गेह विउरुव्वहिं सिंहासण सुसोह । जिणु जणणिसमन्निउ दाहिणम्मि उब्वट्टहिं वरसिंहासणम्मि ॥ १०३ ॥ ४७०३ ॥ वेविणु पुणु पुव्विल्लयम्पि, व्हावेवि निंति उत्तरघरम्मि । जालंति जलणु गोसीसएहिं हिनवंतह आणिय दारुएहिं ॥ १०४ ॥ ४७०४ ॥ तसु भूइ लएविणु करहिं रक्ख मणिपत्थरवायहिं कणि दक्ख ।
'जिणु पव्वयाऽऽउ एहु होउ, सामि परमेसरु मयगललीलगामि ॥१०५॥४७०५ ॥ इय भवि धरिव जिणु करयलेहिं जणणीए समण्णिउ कोमलेहिं ।
पुणु जम्मगेहि नेविणु उवंति पल्लंकसयणि सियअइमहंति ॥ १०६ ॥ ४७०६ ॥ तत्तो पुव्युत्तरदिसि प्रियाउ जिणभत्तिए अइसुपहिट्टियाओ ।
सद्देण सवण-मणसुहयरेण मंगलई देति गुरुआयरेण ॥ १०७ ॥ ४७०७॥ अवि य"पडिबोहेविणु भवियजणु जगि वित्थारवि कित्ति । अंति विहेविणु तुह तणउ सेलेसी वरसत्ति ॥ १०८ ॥ ४७०८॥ अक्ख व् परमपर एहु पावेसइ मोक्खु । सिद्धि महापुरि पइसरवि भुंजेसइ सिवसोक्खु ॥१०९॥४७०९ ॥ १. ससोह पा० विना ।। २. नैति जे० त्रु० ॥। ३. कुणहिं त्रु० का० ॥ ४. दिति जे० का० ॥
बारसमं भवग्गहणं
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