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________________ सिरिसंतिनाहचरिए सूरस्स रायस्स कहाणयं जत्थ दीसंति मोत्तियमया सत्थिया, जत्थ आसणहं पंतीउ सुपसत्थिया । थाल-कच्चोलपविभत्ति जहिं दंसिया, जत्थ रमणीयया विउससुपसंसिय ॥५२१॥४४१२॥ त्ति । तो उवविटु राउ सिंहासणि, जहिं चाउद्दिसि दिन्नय वरमणि। जहिं अडणिय पवरसोवण्णिय नरवइपमुहह सव्वह दिन्निय ॥५२२॥४४१३॥ कणय-रययनिम्मविय सुपरियल वरकच्चोलय सुटु सुनिम्मल।तोपरिविटु रसोइ विसिट्ठीजा जतहनवि उब्विट्ठी॥५२३॥४४१४॥ ५ परिविटुउ वरकूरु सुयंधउं, मचलोइजो कहिं विन दिटुउ।दिन्नदालि अचंतमणोहर जाभुजंती सव्वसुहंकर॥५२४॥४४१५॥ तोपरिविटुउंसप्पि सुयंधळ, वरमंजिटुवन्नु अइसुद्धउं। पुणुदिन्नई वंजणइं अणेगईनाणाविहभेएहिं सुभंगई॥५२५॥४४१६॥ लड्डयलावणमंडियखज्जय सेव मुरुक्किय सुटुमणोज्जय।अन्नविएवमाइ पक्कन्नई, जाइंताईनीसेसईदिन्नई॥५२६॥४४१७॥ इय जा भुंजइ राउ सुविभिउ ताव कुमारह चित्ति वियंभिउ । “एहु नीसेसु निरत्थउ वित्थरु, ज न वि पयडु होइ अंतेउरु" ॥५२६॥४४१८॥ इय एवं चिंतेउं भजाओ तेण ताओ वुत्ताओ । 'परिवेसिऊण य सयं मह पहुणो गोरवं कुणह' ॥५२८॥४४१९॥ तो रयणचूल तह कणयचूल सिरिदत्तनामधेयाओ । अवरोप्परं भणंती 'न सुटु कंतेण कयमेयं ॥५२९॥४४२०॥ १. °य दिन्न सो पा० ।। २. यमुपरि का० ।। ३. उचिट्ठी का० ।। ४. लद्धउ जे० ।। ५. सुगंधई जे० । सुचंगई का० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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