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* सूरस्स रायस्स
कहाणय
सिरिसंति- एत्थ य निवसइ नऽण्णो लोओ मोत्तूण परियणमिमस्स । कयविक्कइयजणो वि हु काउं कयविक्कयं विविहं ॥३१०॥४२०१॥ नाहचरिए मोत्तूण परं एयं रयणीए वसइ दूरओ गंतुं । गोलयबद्धा य नरा विहिया एएण जे नियगा ॥३११॥४२०२॥
देइ य पभूयदव्वं तेण य लोभेण चिटुए सव्यो । एय जणो पर किंतू दिणे दिणे मरइ एक्केको ॥३१२॥४२०३॥ ता जइ तुम पि बीहसि, गंतूणं तो बसाहि अण्णत्थ" । कुमरो वि ईसि हसिउं पविसइ दत्तस्स अत्थाणे ॥३१३॥४२०४॥ दत्तो वि तयं दटुं ससंभमो आसणं दवावेइ । भणइ य 'उवविससु इहं', उवविसइ इमो वि तो तत्थ ॥३१४॥४२०५॥
तंबोलाई सव्वं पडिवत्तिं तस्स कारवेऊण । पुच्छइ य आयरेणं 'वच्छ ! तुम आगओ कत्तो ?' ॥३१५॥४२०६॥ * अह वच्छरायकुमरो देइ इमं उत्तरं जहा 'ताय ! । उज्जेणिपुरवरीओ कारणवसओ इहं पत्तो' ॥३१६॥४२०७॥
एवं च जाव जंपइ कुमरो सह सेटुिणा सगोरव्वं । ता संपत्तो पुरिसो एगो कयफारसिंगारो ॥३१७॥४२०८॥ अचंतदुम्मणमणोतं दटु पुच्छए तओ कुमरो। 'ताय ! किमेसो पुरिसो कयसिंगारो वि विमणमणो?'॥३१८॥४२०९॥ तो दीहं नीससिउं जंपइ सेट्ठी वि 'एस वुत्तंतो । अचंतमकहणीओ तहा वि अक्खिज्जए तुज्झ ॥३१९॥४२१०॥ एयाए मज्झ दुहियाए वच्छ ! पासम्मि जो उ पाहरिओ । सोयइ सो जीएणं मुचइ नत्थेत्थ संदेहो ॥३२०॥४२११॥ एयस्स अज्ज पुत्तय ! पाहरियत्तम्मि वारओ जाओ। तेणेसो विमणमणो, कस्स भयं होइ नो मरणे?' ॥३२१॥४२१२॥ १. पहूय जे०॥
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