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________________ सिरिसंतिनाहचरिए काऊण कटुफालीओ तत्थ काओडिपूरणं काउं । चल्लइ सगिहाभिमुहं परितुट्ठो हिययमज्झमि ॥ ११३ ॥ ४००४॥ जा पत्तो आसन्ने पुरीए ता दिणयरो गयपयावो । निवइ व्व सीयलकरो पत्तो अत्थगिरिसिहरम्मि ||११४ ||४००५॥ खणमेत्तेणं च तओ जाया तमनियरसामला रयणी । नयरीए दुवाराई झत्ति असेसाई पिहियाई ॥११५॥४००६॥ तीए य पुरवरीए कप्पो एसो 'अणुग्गए सूरे। नयरीदाराई न उग्घडंति किर साइणिभएण' ॥ ११६ ॥ ४००७॥ अह वच्छराय कुमरो चिंतइ हिययम्मि “बाहिरघरेसु । नो वसियव्वं कत्थ वि महमहई इमो जओ गंधो ॥११७॥ ४००८ ॥ 'तो कत्थ गमेयव्वा रयणी ? सीयं च दारुणं पडइ । हुं नायं तत्थेव य वच्चामि अरण्णदेवउले" ॥११८॥ ४००९ ॥ इय निच्छ्यं विहे बच्चइ अडवीए तुरियपयखेवो । एगम्मिं तरुवरम्मि ओलंबित्ताण का ओडिं ॥ ११९॥४०१०॥ पइसइ देउलियाए कुहाडियं करयलम्मि काऊण । ढक्कित्तु कवाडाई सोवइ तत्थेगदेसम्मि || १२० ||४०११॥ एत्थंतरम्मि निसुणह जं जायं रयणिमज्झयारम्मि । अच्चन्भुयं महतं लोयाणं चित्तमोहयरं ॥१२१॥४०१२॥ वेयड्ढनगवराओ अइरम्भविमाणमज्झयारत्थो । विज्जाहरीण सत्थो संपत्तो तत्थ देवउले ॥१२२॥४०१३॥ अवि यफारसिंगारवेसाओ ताओ तहिं बेंति अवरोप्परं देवगेहब्बहिं, हॅले ! हले ! करहि सिंगारु सविसेसयं, जेण नच्चामु गायामु तह रासयं, हि वीण तुमं चित्तले ! वरं, धरहि तालज्जुयं मयणिए ! सुंदरं, १. अत्यइरि° जे० पा० ॥ २°इजओ इमो गंधो त्रु० का० ॥ ३. तां जे० ॥ ४. हलि जे० ॥ सूरस्स रायस्स कहाणय ४७६
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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