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________________ सिरिसंतिनाहचरिए 'किं एयाई अजं सद्दिवसे चिय समागयाई ?' ति । 'न मुणिजइ कजमिणं एइ न सो वच्छवालो वि' ॥ ८९ ॥ ३९८० ॥ विमलाए पत्तरम्मिदिन्नम्मि भणइ सेट्ठी वि । 'एयं पि न सोहणयं, जं नऽज्जवि एइ सो बालो' ॥ ९०॥३९८१॥ एवं विलवंताणं अधीइपराणं समागओ एसो । भणिओ 'वच्छ ! किमेयं ?' सो जंपइ 'सुत्तओ होतो' ॥९१॥३९८२ ॥ एवं च बीयदिवसे तइययदिवसे वि वच्छरूवाणि । जावाऽऽगयाणि ताव य दढं उवालंभए सेट्ठी ॥९२॥३९८३ ॥ ताहिं वि सो नियपुत्तो रुट्ठाहिं पर्यपिओ जहा 'वच्छ ! । किं परदेसागमणं, कम्पयरतं च नो मुणसि ? ॥९३॥ ३९८४ ॥ तह य परगेहवसणं कटुणं भोयणं च जेणेवं । आणेसि उवालंभं' इय भणिए भणइ एसो वि ॥९४॥३९८५॥ 'अंबे ! न बच्छरूवे रक्खेमि अहं विणिच्छओ एस' । ताहिं वि सव्वं कहियं सेट्ठिस्स जमक्खियं तेण ॥ ९५ ॥ ३९८६॥ तो सेट्टिणावि अन्नो बिहिओ वच्छाण रक्खगो कोवि । एसो वि जाइ निचं ताणं कुमराण पासम्मि ॥ ९६ ॥ ३९८७ ॥ दट्टु तस्स सरूवं अहऽन्नदिवसम्मि सिक्खवंति इमं । 'पुत्तय ! तं निचितो अम्हे उ न निव्वहामो त्ति ॥९७॥ ३९८८॥ किंच पाए पुत्तय ! गिम्मि अम्हाण इंधणं नत्थि । ता आणेहि कुओ वि हु किं हिंडसि निययइच्छाए ? ' ॥ ९८ ॥ ३९८९ ॥ इय जणणीए भणिओ अभिमाणधणत्तणेण भणइ इमो । 'मग्गेहि सेट्ठिपासे कुहाडियं तह य का ओडिं ॥ ९९ ॥ ३९९०॥ rssमि पाए तमिंधणं जं न केणइ कयाइ । पुवं' तो आणइ तं मग्गिउं देवी ॥ १०० ॥३९९१॥ १. हुतो पा० विना ।। २. ए पभणए सो वि जे० ॥। ३. विणच्छ° त्रु० ॥ १० सूरस्स रायस्स कहाण ४७४
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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