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सिरिसंतिनाहचरिए
अहवा विदुजणाणं पयइ चिय एरिसा न संदेहो । जम्हा हु विउसवग्गा भणति एयारिसं वयणं ॥ ३२ ॥ ३९२३ ॥ "ववहरइ अण्णह चिंय सुद्धसभावो जयम्मि साहुजणो । मन्नइ तमन्नह चिंय दुटुसभावो खलजणो वि ॥३३॥३९२४॥ जह जह परिसुद्धमई सुयणो नेहेण कुणइ चेट्ठाओ । तह तह इयरो वि दढं वियप्पए अन्नहारूवं " ॥ ३४ ॥ ३९२५ ॥ इय चिंतिऊण मंती गंतुं निवदेवरायपयमूले । विन्नवइ 'देव ! एसो न सोहणो होइ बर्द्धतो' ||३५|| ३९२६ ॥ जंप य देवराओ ' ता किं कीरउ इमम्मि वत्थुम्मि ?' | मंती वि भणइ 'सामिय ! निव्विसओ कीरऊ एस' ॥ ३६ ॥ ३९२७॥ सामत्थिऊण एवं पभायकालम्मि जंपिओ कुमरो । जह 'मह विसयं मोत्तुं वच्चसु अन्नत्थ तं कुमर !' ॥३७॥३९२८ ॥ ' आएसो ' त्ति भणित्ता बच्चइ जणणीए पायमूलम्मि । जं जह वत्तं सव्वं, तं तह परिकहइ नीसेसं ॥ ३८ ॥३९२९॥ तं सोऊणं देवी अंसुपवाहेण धोयगंडयला । मण्णुभरपूरियंगी अचंतं दुक्खिया जाया ॥ ३९ ॥३९३०॥ तंदुक्खयं नए पपई वच्छरायकुमरो वि । 'मा अंबे ! कुण एवं, आएसं देहि वच्चामि ॥४०॥ ३९३१॥ देवी व भइ 'पुत्त ! जइ एवं तो अहं पि सह तुमए । नियभगिणीए समेया आगच्छिस्सामि अवियप्पं ' ॥४१॥३९३२॥ अह भइ वच्छराओ 'माए ! देसतराई विसमाई । सुहसमुचिया तुमं पुण ता चिटु सुहेण एत्थेव ' ॥४२॥ ३९३३॥
१. धेय पा० ॥ २. जंपेड़ जे० ॥
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सूरस्स रायस्स कहाणय
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