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________________ सिरिसंतिनाहचरिए I एवं सो परिवडूढइ कमसो ता जाव अन्नदियहम्मि । पेच्छइ पुणो वि सुमिणं देवी सुहसयणपरित्ता ॥ १० ॥ ३९०१॥ संखतलबिमलधवलं आहरणविभूसियं सुपुटुंगं । वयणेण मुहमइंतं पवरं अह गोविसं पयडं ॥११॥३९०२ ॥ तं दण विद्धा देवी वियसंतलोयण कवोला । साहइ पइणो सम्मं तेणाऽवि हु से समाइटुं ॥ १२ ॥ ३९०३॥ जह 'होही तुज्झ सुओ देवि ! अंणण्णसमो गुणगणेहिं । जम्हा मुहे विसंतो सच्चविओ गोविसो तुमए' ॥१३॥ ३९०४ ॥ ' एवं ' ति होउ देवी मन्नित्तु सुहेण गब्भमुव्वहइ । पसवइ य पसवसमए पुत्तं पसरतकंतिल्लं ॥ १४ ॥ ३९०५ ॥ पुणरवि चेडीहिं तओ राया वद्धाविओ पहाहिं । कारवइ पुणो वि निवो बद्धावणयं विसेसेण ॥१५॥३९०६ ॥ पत्ते य णामसमए सुमिणस्सऽणुसारओ इहं पि णिवो । उवइ कुमरस्स णामं 'होउ इमो वच्छराओ' त्ति ॥ १६ ॥ ३९०७ ॥ वडूढंतो य कमेणं जा पत्तो अटुमम्मि वरिसम्मि । ताव कलायरियस्स उ समप्पिओ सोहणदिणम्मि ॥ १७ ॥ ३९०८ ॥ तेण वि कलाकलावो बालेण वि सिक्खिओ अणण्णसमो । अन्नो वि हु गुणनियरो अब्भसिओ झत्ति सविसेसो ॥ १८ ॥ ३९०९ ॥ पुरणवओ य सव्वो वह दढं तम्मि चेव अणुरायं । एत्थंतरम्मि राया अक्कंतो गरुयरोगेहिं ॥ १९ ॥ ३९१०॥ अवि यदरूद्दजर - गुरुदाहपयावियदेहपंजरो, दारुणगिम्हसमयदवताविउ नाइ सुजिण्णकुंजरो । हरिसासासखासनिवमंद विसोसियसव्वगत्तओ, बहुविह एवमाइअन्नेहिं वि रोयहिं राउ पत्तओ ॥२०॥३९११॥ १. मुहबईत पा० ।। २. अण्णण जे० ॥। ३. रोइहिं का० । रोएहिं जे० || 34545454534343054543 सूरस्स रायस्स कहाण ४६७
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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