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सिरिसंतिनाहचरिए
काऊणं पाणवह जीवा पंचेंदियाण जीवाण । निवडंति महानरए, भावेहि इमं सचित्तम्मि ||१८|| ३७७७॥ पार्वति तत्थ दुक्खं नाणाविहजायणाइसंजणियं । साहावियं च विविहं, भावेहि इमं सचित्तम्मि ॥ १९ ॥ ३७७८ ॥ तिरिए वि पाणिवहाओ पावए दारुणं महादुक्खं । तण्हा - छुहाइजणियं, भावेहि इमं सचित्तम्मि ||२०|| ३७७९ ॥ अन्नाई विजाई दुहाई काई संसारियाई तिक्खाई। जीववहाओ पावइ, भावेहि इमं सचित्तम्मि ||२१|| ३७८० ॥ इय जाणिऊण सुंदर! जीववहं परिहरितु कुण धम्मं । पावेसि जेण सोक्खं, भावेहि इमं सचित्तम्मि" ॥२२॥३७८१॥ एवं भणिए भिडिओ जंप 'निसुणेहि राय ! मह वयणं । एसो मह भयभीओ तुज्झं सरणं समल्लीणो ॥ २३ ॥३७८२ ॥ अहयं तु तिक्ख-खरदुक्खलक्खपरिकारियाए रोद्दाए । भुक्खाए रक्खसीए गहिओ वच्चामि कं सरणं ? ॥२४॥३७८३ ॥ किंच तुमं सप्पुरिसो कस्स वि मणसा वि कुणसि नो दुक्खं। ता जह रक्खसि एयं ममं पितह रक्खसु नरेंद ! ॥ २५॥३७८४ ॥ धम्मम्म वि नत्थि मई मह भुक्खादुक्खखणियखेत्तस्स । ता एयं देहि लहुं जा नवि वच्चंति मह पाणा' ॥ २६ ॥३७८५ ॥ एवं भणिए ओलावएण जंपेइ मेहरहराया । 'जइ भुक्खिओ सि धणियं, ता अन्नं देमि आहारं ' ॥२७॥३७८६ ॥ सो जंपेइ 'न मंसं मोत्तुं जाईए मज्झ आहारो' । भणइ ईमो 'मंसं पि हु, अन्नेहिं मारियं देमि' ||२८||३७८७|| १. पा० विना पाविंति जे० । पावैति त्रु० का० ॥ २. इमो अन्नं पि त्रु० ॥
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दसमेक्कारसभवग्गहणाई
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