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________________ सिरिसंतिनाहचरिए देइ बहुसगडि-सागडमाणयणत्थं तु ताण सालीण । आणेइ तओ साली सा वि हु नयरस्स मज्झेण ॥६०॥३२८९॥ जंपेइ तओ लोगो ‘धण्णो संपुण्णओ धणो चेव । जस्स वहू अप्पेई पंच कणे सगडि-सगडेणं' ॥६१॥३२९०॥ भइ य ते 'ताय ! इमे पडिगाहह सालिअक्खए पंच' । तं सोउं सो तुट्टो जंपइ लोयाण पञ्चक्खं ॥ ६२ ॥ ३२९१॥ 'भो ! भो ! निसुणह तुम्भे एसा मह गेहसामिणी सुण्हा । तम्हा इमीए आणं करेउ सव्वो वि मह लोगो ॥ ६३ ॥ ३२९२ ॥ जो मह आणं खंडइ सो खंडेज्जा उ रोहिणीए वि' । ' एवं ' ति य सव्येहिं वि पडिवण्णं 'सेट्टिणो वयणं ॥ ६४ ॥ ३२९३ ॥ ५ एवं निच्चितमणो बिसयसुहं भुंजए तओ सेट्टी । नियधम्मकम्मजुत्तो आराहइ देव- गुरुचलणे” ॥६५॥३२९४॥ तो' 'जियसत्तुमहामुणि ! एयं अक्खाणयं मए कहियं । संपइ निसुणसु अत्थं एयस्स मए कहिजंतं' ॥ ६६॥३२९५॥ "जह रायगिहं तह एत्थ मुणह मणुयत्तणं मणुस्साणं । सुण्हाचउक्कसरिसा, सव्वे वि हु पाणिणो भव्वा ॥ ६७ ॥ ३२९६॥ जव धणो तह गुरुण सव्वेसि जियाण एत्थ हियकारी । जह ते सालीण कणा महव्वया पंच तह मुणसु ॥ ६८ ॥ ३२९७॥ जह चउघरकुलवग्गस्स मेलणं तह चउव्विहो संघो । जह तस्समक्खदाणं सालीण इहं तह वयाणं ॥ ६९ ॥ ३२९८ ॥ जह उज्झिया उ सुहाउज्झियसाली जहत्थअभिहाणा । पेसणकारितेणं बहुहुहलक्खक्खणी जाया ॥ ७० ॥ ३२९९॥ तह भव्वजिओ वि महव्वयाइं जो चयइ गुरुविदिन्नाई । संघसमक्खं गिण्हिय महमोहपरव्यसो पावो ॥७१॥३३००॥ १. सिद्धि त्रु० ।। २. चरणे का० ॥ ३. ता त्रु० ॥ ४. अत्वं अंतरंग एवं पा० ॥ १० 345454545020208 उन्हं सुहा बुद्धपरिक्खणं ३९१
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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