________________
सिरिसंतिनाहचरिए
सो इह चेव भवम्मिं भण्णइ लोएण दुटुवयणेहिं । धी ! धी ! पुराणवयभरपरिभग्गचियाए लक्कडय ! ॥७२॥३३०१॥ 'को तुह मुहं पि पेच्छइ ? दिट्ठिपहाओ दुयं समोसरसु' । परलोयम्मि उ हिंडइ बहुविहजोणीसु दुक्खत्तो ॥७३॥३३०२ ॥ जह वा सा भोगवई जहत्थनामेव भुत्तसालिकणा । पेसणविसेस कारित्तणेण दुहमेव संपत्ता ॥ ७४ ॥ ३३०३ ॥ तह जीवियाइहेउं पालेइ क्याई जो इहं जीवो । आहाराइपसत्तो सिवसाहणसंपयाचत्तो ॥ ७५ ॥ ३३०४॥
सो भत्ताइजहिच्छं लहइ इहं 'लिंगिओ' त्ति काऊण । विउसाण नाइ पुज्जो होइ दुही चेव परलोगे ॥ ७६ ॥ ३३०५॥ जह सा रक्खयसुहा रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा । भोगाणं आभागी जाया परिवारमन्ना य ॥७७॥ ३३०६ ॥ तह जो सम्मं पालइ निरईयारे महव्वए पंच । गुरुपुरओ पडिवज्जिय पमायमुज्झित्तु दूरेण ॥७८॥३३०७ ॥
सो अप्पयसंतुट्टो पंडियनमिओ इहेव लोगम्मि । जायइ अचंतसुही, परमपयं लहइ परलोए ॥७९॥३३०८॥ जह सा रोहिणिबहुया रोहियसाली जहत्थनामा उ । विद्धिं नेऊण कणे सव्वस्स वि सामिणी जाया ||८०||३३०९॥ तह जो वयाई पडिवजिऊण सम्मं सयं तु पालेइ । अन्नाण वि बहुयाणं सुहहेउं देइ भव्वाणं ॥८१॥ ३३१०॥ सो लोगाओ पसिद्धिं पावइ जह 'संघनायगो एस' । गोयमपहु व्व स-परो भयाण कल्लाणसंजणओ ॥८२॥३३११॥ तित्थस्स बुड्ढिजणओ, परतित्थीणं पि कुणइ अक्खेवं । विउसनिसेवियचरणो पावइ कमसो सिवसुहं पि” ॥८३॥ ३३१२॥
१. परलोए त्रु० ॥
343454303030343434
उन्हं सुहा बुद्धिपरिक्खणं
३९२