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सिरिसंति
नाहचरिए
उज्झियाईणं चउण्हं सुण्हाणं बुद्धिपरिक्खणं
ता एयाण मज्झे मह सुण्हाणं इमस्स गेहस्स । 'का सामिणी भविस्सइ ?' जाणामि परिक्खिउं सम्म" ॥१२॥३२४१॥ इय चिंतिउं पभाए आएसं देइ सूवयाराण । जह 'कुणह सव्वपवरं पगुणं आहारजायं' ति ॥१३॥३२४२॥ तत्तो निमंतिऊणं कुलहरवग्गं चउण्ह सुण्हाणं । अण्णं पि हु पउरजणं भुंजावइ विविहभोजेहिं ॥१४॥३२४३॥ भुत्तुत्तरम्म य तओ तंबोलाईहिं विहियसम्माणं । उववेसइ वरमंडवमज्झम्मि समत्थकुलवग्गं ॥१५॥३२४४॥ तस्सेव य पञ्चक्खं हक्कारइ जेटुमुज्झियं सुण्डं । दाऊण पंचसालीए अक्खए तीए हत्थम्मि ॥१६॥३२४५॥ भणइ 'तुह पुत्त ! एए समप्पिया सब्बलोयपच्चक्खं । जइया हे मग्गेमी अप्पेज्जसु तइय' इय भणिउं ॥१७॥३२४६॥ वीसज्जिया य एसा विजणे गंतूण चिंतए एवं । "नूणं वुड्ढत्तेणं विवरीयमई इमो जाओ ॥१८॥३२४७॥ जो एवं मेलावं काऊणं देइ पंच सालिकणे । ता किं मह एएहिं ? छड्डेमि, जया पुणो एसो ॥१९॥३२४८॥ मग्गिस्सइ तइया है दाहं पल्लंतराओ अण्णाओ" । इय चिंतिउं समुज्झिय लग्गा नियगेहवावारे ॥२०॥३२४९॥ एयं चिय बीयं पि हु हक्कारित्ताण भोगवइनाम । देइ तह चेव सालीण अक्खए, सा विचिंतेइ ॥२१॥३२५०॥
"एसो बुद्धिजुओ वि हु केण वि कजेण भतिओ ससुरो । जो एत्तियदव्ववयं करेइ कजं विणा चेव ॥२२॥३२५१॥ * अप्पेइ य पंचकणे एत्तियलोयस्स मज्झयारम्मि । ता कह छड्डेमि इमे? ससुरेण सयं विदिन्ना जे" ॥२३॥३२५२॥
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१. तीय जे० ।। २. पुत्ति जे० का० ।। ३. भणिए त्रु० ॥ ४. सर्व पि दिन्ना पा० ॥