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________________ सिरिसंतिनाहचरिए भणइ णिवो 'जइ एवं आगंतव्यं झडत्ति बच्चाहि' । इय भणिओ जाइ तओ 'देवाऽऽएसो ' त्ति भणिऊण ॥४१॥२९०४॥ जा कचं काऊणं मज्झण्हे वलइ अंतरालम्मि । ता झत्ति समुच्छलियं दंदूलमईबभीसणयं ॥ ४२ ॥ २९०५॥ कहं ? - उच्छलइ बहलधूली पयंडपवणेण रुद्धदिद्विवहा । निवडंति सक्करोहा पत्त-तणाई भमंति नहे ॥ ४३ ॥ २९०६ ॥ निवडइ य बिरलविरलं नीरं अइगरुयखडहडरवेण । बिजुलया वि य अहियं चमक्कए नयणमोहयरी ॥४४॥२९०७॥ धूली - जलभयभीओ आसयइ महंतवडसमीवम्मि । जा तत्थ चिटुइ खणं अल्लीणो सुणइ ता सद्दं ॥ ४५ ॥२९०८ ॥ उवरिं वडस्स चिंतइ “कस्सेसो हंत ! सुम्मए सद्दो ? । हुं नायं भूयाणं जम्हा पेसाइया भासा ॥४६॥२९०९॥ ता किं भणति एए निसुणेमि इमाण किंचि उल्लावं" । जा एवं सो चिंतइ ता भणियं तत्थ एक्केण ॥४७॥२९१०॥ 'फो फो! जानसि किंची?' सो पभनदि 'तो कहेहि मह किं तं ?' । जंपदि इमो वि 'अज्जं मलिही एसो नलिंदो त्ति' ॥४८॥२९११॥ बीएन तओ पुट्ठो 'केन निमित्तेन ? कीए वेलाए ?' । सो जंपदि 'सप्पाओ, पढमे पहलम्मि लत्तीए' ॥४९॥२९१२॥ सोउं पिसायवयणं चित्तम्मिं दूमिओ दढं एसो । चिंतइ “हा ! कह कजं दइवेण विणिम्मियं एयं ? ॥५०॥२९१३॥ ता जामि सिग्घसिग्धं मा होउ कयाइ एवमेवेयं" । इय चिंतिऊण सिग्धं संपत्तो रायपासम्म ॥ ५१ ॥ २९१४॥ या विहु अत्थाणे उवविट्ठो जा पओससमयम्मि । ता अक्खरइ न किंचिवि आसन्ने आवयाकाले ॥५२॥२९१५॥ १. समुच्चलि जे० । समुत्थलि का० ॥ २. हु का० ॥। ३. होइ जे० पा० ॥ अमयंबनिवस्स कहाणय ३४३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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