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सिरिसंतिनाहचरिए
अमयंबनिवस्स कहाणयं
झत्ति विसज्जिय तत्तो अत्थाणं विसइ वासभवणम्मि । देवीए समं सुत्तो तत्थेव य विसइ पाहरिओ ॥५३॥२९१६॥ . सोहेइ वासभवणं सव्वत्थ वि उवरि हेटुओ चेव । जा नवि पेच्छइ सप्पं ता खग्ग कड्रिढऊणेसो ॥५४॥२९१७॥ दीवच्छायाए डिओ निरिक्खए जाव हेटु उवरिं च । ता पेच्छइ चंदोवयविवरेण पलंबियं सप् ॥५५॥२९१८॥ तं दटुं सहस चिय लेइ अभीओ करेण अहिवयणं । छिन्नइ करवालेणं उवरिं न य मुयइ हत्थाओ ॥५६॥२९१९॥
"मा उल्ललिय कयाइ वि लग्गिस्सइ झत्ति रायदेहम्मि" । ता खणमेकं धरि निजीवं मेल्लइ तलम्मि ॥५७॥२९२०॥ ५ ॐ कड्रिढत्तु बीयखंड दोण्णि वि गोवेइ एगदेसम्मि । अच्चंत संतुटो नियइ तओ देविहिययम्मि ॥५८॥२९२१॥
उत्तुंगथोरथणउवरि निवडिए रुहिरबिंदुणो कइ वि । तो लूहइ हत्थेणं विससंकमबीहिओ एसो ॥५९॥२९२२॥ एत्थंतरम्मि राएण जग्गिय पेच्छए थणाणुवरिं । तस्स फिरतं हत्थं तं दटुं कोवमुव्वहइ ॥६०॥२९२३॥ चिंतेइ "हंत ! चुक्को एसो ता किं लएमि से सीसं ? । अहवा नहि नहि जम्हा उववुत्तो एस बलकलिओ ॥६१॥२९२४॥ किं जिप्पइ जिणई वा ? माराविस्सामि तो उवाएण" | इय चिंतिऊण सुत्तयवेड्डेण तहेव संगई ॥६२॥२९२५॥ एत्थंतरम्मि पढमो जामो रयणीए वजिओ सहसा । उदुविय वच्छराय सब पि गंतूण सो सुयइ ॥६३॥२९२६॥ तो जंपइ नरनाहो 'को पाहरियाण एत्थ गणम्मि?'। 'जिउ देव ! वच्छराओ अहयं चिट्ठामि पयमूले' ॥६४॥२९२७॥
१. °यचेडेण का० ।।