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________________ सिरिसंतिनाहचरिए जत्थ देहं सया सेयनी उलं, खिजए माणसं तेण णिच्चाउलं । झिजए पाणिणं जत्थ देहे बलं, सुस्सए जत्थ तण्हाए देहीगलं ॥ ३३ ॥ २८९६ ॥ तेहाजयको मज्झमि डिओ अयंगोलयसम सूरु | धम्मइ गुरुपवणेण जहिं, दिंतउ दाहह पूरु || ३४ ॥ २८९७ ॥ जत्थरम्मम्मल निरंतरु अइपियई, हारलट्ठि जहिं रंजइ लोयहं निरु हियं । जहिं सिरिखंडविलेवण अइसई वल्लहई, तालियंट वीयणइ निरारिउ दुल्लहई ||३५||२८९८॥ - किरणसोहग्गमनिवि जहिं लहहिं, जहिं जलद्दवहि दिन्न वि भित्तरि पउमहहिं । तिरुकिसलयसत्थर वित्थर सुहु करहिं, जहिं पयत्थ अइसीयल सयल वि मणु हरहिं ॥३६॥२८९९॥ जहिं पडुलपल्लवियनवल्लेहिं पल्लवेहिं, जहिं मल्लिय- सल्लइय- सुफुल्लमहल्लवेहिं । जहिं सिरीसतरुनियर वि सुमणससामलिय, जहिं बहूधूली पडलिहिं दिसिमुह झामलिय ॥३७॥२९००॥ तहिं एवंविहगिम्हे विन्नत्तो जेटुएण नरनाहो । 'देव ! महं गामम्मि पओयणं विजए किंपि ॥३८॥२९०१॥ ताज तुम्हाSSएसो होइ तओ जामि अज्ज पहु ! तत्थ' । राया वि भणइ 'गामे वच्चसु, पर किंतु तुह ठाणे ॥ ३९ ॥ २९०२॥ को मज्झ अंगरक्खो ? ' इय भणिए भणइ देवराओ वि । 'तम्मि समयम्म सामिय ! अहमेव झडत्ति एहामि' ॥४०॥२९०३ ॥ १. तहा जे० का० प्रत्योर्नास्ति । २. तालयं जे० का० ॥ ३. "दकिरण जे० का० ।। ४. पल्लविहिं जे० ॥ ५. 'पडलेहिं का० ।। ६. अहमवि य झ° का० विना ॥ १० अमयंबनिवस्स कहाण ३४२
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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