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________________ सिरिसंतिनाहचरिए नरसिंघकुमरस्स कहाणयं णिवडियई भणिउ अह तक्करेण, 'भो सुहड ! जाहि वडरुक्खु तेण, नारायणदेउलपटुिभाइ पायालभवणुं तहिं अस्थि काइ, धणदेविनाउं मह भगिणि तेत्थु, परिवसइ तहऽन्नु वि नारिसत्यु, रयणाई असंखिउ तह य अत्थु, तहिं वच्च लेवि मह खग्ग सत्थु, सिलविवरि खिवेविणु तीए सदु, काऊण कहहि सव्वु वि विमहु, उग्घाडइ जेण सिलाद्वारु, तं भुंजहि सव्व अईव सारु, अहवा वि समप्पहि जणवयस्स, जं जस्स तणउं तं सव्वु तस्स,' इयं जंपेवि सो पंचत्ति पत्तु, नरसीह वि जाइ तहिं तुरंतु, पुव्वुत्तु करेविणु राउ जाम्ब, पविसरइ नियच्छइ सव्वु ताम्ब, तो तीए भणिउ 'पल्लंकि एत्थु, वीसमहि खणंतरु देव सत्थु,' जपेवि एव निग्गय दुवारु, पुणु हेरइ आविवि वार-वारु, तं पेक्खिवि संकिउ राउ चित्ति, पल्लंकि उवइ उवहाणु झत्ति, सयमवि जा दीवय हेटुि डाइ, ता मुक्त जंतसिल तीए घाइ, १. इह पा० ।। २. तह जे० ।। ३. जंपवि जे० । जैपिबि का० ॥ ४. रेहइ पा० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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