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________________ सिरिसंतिनाहचरिए नरसिंघकुमरस्स कहाणयं चलवलंत अदटूण आसंकिओ, चीरमवणेत्तु, जोएइ पाकिओ, "एत्थ अत्थम्मि अहमेव सुपवंचिओ, पेच्छ कह तेण धुत्तेण निरु वंचिओ," एव चिंतंतु राएण सो हक्किओ, 'किं च रे पाव ! छलघाइ ! चम्मक्किओ, जइ सि बोल्लाविउँ त सि घायंतओ, ता तुम सुहडमज्झम्मि गणियंतओ, मा भणिज्जासि छम्मेण हं घाइओ, होहि रे ! पगुणु' इय भणवि उद्घाइओ, 'साहु साहु' त्ति चोरो वि वग्गंतओ, गहियकरवाल रायस्स संपत्तओ। अवि य_ जुझंति दो वि वणमहिस जेंव, वग्गति दो वि वरवंड जेंव, उल्ललहिं दो वि नवमल्ल जेंव, पहरंति दो वि दढवइर जेंव, वचंति दो वि उज्झाय जेंव, गजंति दो वि घणमेह जेव, नायति दो वि खरनहर जेंव, हिंसति दो वि वरतुरय जेव, इय सिक्ख परिक्खिवि, समउ निरिक्खवि, राइं तक्करु पाडियउ । किर परसुपहारें, अइनी हारें, केलितरु व्व निवाडियउ ॥१८॥२६३१॥ ३०१ १. घाय चम्म पा० ।। २. भणेजासि पा० विना ।। ३. उबज्झाय का० || ४. परिक्खवि पा० का० ।। ५. पहारि ७०।। ६. नीहारिं त्रु०॥
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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